Namkaran

शिशु नामकरण का आध्यात्मिक महत्व :-

हिन्दू धर्म ,संस्कृति और शास्त्रों में मानव के उत्थान में वैदिक ऋषियों द्वारा प्रतिष्ठित सोलह संस्कारों का विशेष महत्व है l ये पवित्र संस्कार मानव की आंतरिक शुद्धि, चरित्र विकास और देवत्व जागरण में सहायक होते हैं l इनमें से एक संस्कार जिसका हमारे व्यवहारिक जीवन में विशिष्ट स्थान है l यह है- नामकरण संस्कार l

जगत जीवन में हर वस्तु नाम रूप है l रूप वस्तु के परिचय , अस्तित्व , गुणों को अभिव्यक्त करने का प्रतीक ‘नाम’ ही होता है l नाम से मनुष्य की पहचान होती है l

संसार में हर देश में शिशु नामकरण की विलक्षण प्रथाएं हैं l किन्तु अध्यात्म प्राण भारत में नामकरण का विशेष महत्व है l हिन्दु शास्त्रों में वर्णित नामकरण संस्कार ऋषियों के वैज्ञानिक , धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन का प्रतिफल है l यह नवजात शिशु के अधिभौतिक , अधिदैविक एवं आध्यात्मिक अभ्युदय की परम मंगलमयी यात्रा का प्रतीक है l नामकरण के अनुवांशिक , सामाजिक धार्मिक आधार बिंदु तो है ही किन्तु हमें इसके आध्यात्मिक सत्य को भी समझना  होगा l

आत्मज्ञानी ऋषियों ने नामकरण संस्कार का सूत्र – ग्रंथों, स्मृति–ग्रंथों , निबंध ग्रंथों ज्योतिष शास्त्रों तथा मुहूर्त – ग्रंथों में सूक्ष्म विवेचन किया है l ताकि नाम के अनुरूप शिशु सर्वांगीण प्रगति के द्वारा दिव्य सत्ता बन सके l

नामकरण करते समय “नाम शब्द” की ध्वनि के रचनात्मक स्पंदनों के बारे में हमें ज्ञान होना आवश्यक है l शब्दों में ध्वनियाँ होती है l जो हमारे अन्दर सचेतनता तथा गुप्त शक्तियां तक भरती रहती है l इन शब्दों के स्पंदनों में आकार उत्पन्न करने की शक्ति  होती है l अच्छी या बुरी l अत: शब्द की शक्ति को अनुभव करने के लिये शब्द के अर्थ को समझना आवश्यक है l

हम देखते हैं भारत वर्ष में नामकरण अधिकतर देवी – देवताओं के नाम पर होता है l इसका मूल कारण है – बालक को पुकारने के साथ ईश्वर नाम के उच्चारण और पावन स्मरण का लाभ मिले l

एक पौराणिक कथा है –  अजामिल जैसा पापी भी अपने पुत्र को “नारायण “ नाम से पुकारकर विष्णुलोक का अधिकारी हो गया l इस दृष्टांत से हम समझ सकते है – नाम – शब्द और उसके अर्थ की शक्ति कितनी विशाल और महान होती है l

अत: शिशुओं के नाम बहुत सुन्दर , दिव्य गुणों से सम्बंधित और अर्थ पूर्ण रखना चाहिये l अर्थहीन नाम से शिशु के सम्पूर्ण जीवन पर दुष्परिणाम आते हैं l तथा आत्मा का सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो जाता है l शिशु नाम चयन में पूर्ण सचेतनता रखना आवश्यक है l नाम ऐसा रखें , जिससे उसके अर्थ का सहज गया हो l

बालक जैसे –  जैसे बड़ा हो तो उसे अपने नाम का अर्थ गुण और उसकी विशेषता भी बताना चाहिये l  ताकि वह नाम के अनुरूप गुणों को अपने अन्दर विकसित करने का सचेतन प्रयास करता रहे l

माता – पिता का भी कर्तव्य है कि बालक को उसके नाम के अनुरूप जीवन के सर्वंगीण विकास के दिव्य विचार , शिक्षा , साधन देते रहे l ताकि नाम रूप शिशु फूल की तरह खिलकर अपने आत्म – रूप को प्रकट कर सके l

नाम कैसा हो ?

  • नाम का उच्चारण अतिसरल और श्रुति मधुर हो l
  • यश , ऐश्वर्य और शक्ति बोधक हो l
  • नाम संत, दिव्यात्मा या प्रभु का स्मरण कराने वाला हो l
  • शिशु के अन्दर अपने आराध्य के प्रति आकर्षण श्रद्धा – भक्ति और विश्वास उत्पन्न करने वाला हो l
  • राष्ट्र प्रेम जागृत करने वाला हो l ताकि शिशु का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र उत्थान और भक्ति का प्रतीक बनकर जगत का मंगल करे l
  • समूची सृष्टि को शान्ति , शक्ति , प्रकाश और आनन्द प्रदान करने वाला हो l

भारतीय धर्म , संस्कृति और शास्त्र के अनुसार शिशु जिस नक्षत्र में जन्म लेता है उस नक्षत्र के अनुसार शिशु जन्म के 10 वें या 12 वें कोई शुभ दिन शुभ मुहूर्त में प्रात: काल सिद्ध गुरु, ज्ञानी, घर के बड़े या पिता द्वारा शिशु का नामकरण किया जाता है l ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली बनाई जाती है l  नामकरण समय पूर्वान्ह श्रेष्ठ , मध्यान्ह मध्यम तथा अपरान्ह और रात्रिकाल निषिद्ध है l

      हिन्दू शास्त्रों में चार बिन्दुओं पर शिशु नामकरण विधान है –

तत्च नाम , चतुर्विधम् – कुलदेवता सम्बद्धं , मास  सम्बद्धं , नक्षत्र सम्बद्धं, व्यवहारिकं चेति l – ( वीर मित्रोदय संस्कार प्रकाश ) l

प्रसूता को पंच गव्य प्राशन कराकर शिशु के पिता को स्वयं मंगल स्नान करके , शिशु को नहलाकर सुन्दर वस्त्राभूषण पहनकर, तिलक लगाकर पवित्र आसन पर बैठना चाहिये l नामकरण हेतु मां की गोद में पूर्वाभिमुख बच्चें को सुलाना चाहिये l तत्पश्चात  परम प्रभु आद्याशक्ति समस्त देवता गणों दिव्य आत्माओं का पवन स्मरण , नमन कर प्रार्थना और आव्हान करना चाहिये l

देव पूजन , गृहपूजन , हवन आदि करके पंचतत्वों – पृथ्वी , जल, अग्नि , वायु और आकाश तत्व से शिशु के संरक्षण , स्वास्थ्य , दीर्घायु और आशीर्वाद की प्रार्थना करना चाहियेl

      हिन्दू धर्म विधान में शुभ बेला में नाम देवता का आव्हान किया जाता है l

            नाम देवाताभ्यो नम: आवाह्यामि l समर्पयामि l

एक कांसे के पात्र में अक्षत (चांवल ) फैलाकर उस पर स्वर्ण शलाका से शिशु का नाम लिखेँl तत्पश्चात् यह दिव्य संकल्प करें –

हे परम प्रिय , दिव्य शिशु तेजस्वी जीवात्मा , परम प्रभु ,  आद्याशक्ति मां भगवती एवं कुल देवता की असीम कृपा से धरती पर तुमने अमुक नक्षत्र में जन्म धारण किया है l तुम हम सबके लिये परम प्रभु का दिव्य उपहार हो l हम तुम्हारे माता – पिता तुम्हें जन्म देने हेतु यंत्र मात्र है l हम जगत में परिचय हेतु आज से तुम्हारा अमुक नाम रखते हैं l तुम्हारा अमुक गौत्र है l

तुम्हारे कुल देवता का अमुक नाम है l तुम सदैव उनके प्रति श्रद्धा – भक्ति रखते हुए उनकी आराधना करो l भगवान् / सद् गुरु के श्री चरणों में सदैव तुम्हारा सत्ता के सभी  करण – शरीर , प्राण , मन . ह्रदय अंतरात्मा और आत्मा एकाग्र और स्थिर हो l तुम अपने जीवन के दिव्य लक्ष्य के प्रति सचेतन रहो l तुम दिव्य सत्ता बनो l

हम सब परिजन परम प्रभु और मां भगवती से तुम्हारे सर्वांगीण स्वास्थ्य  और तुम्हारी चेतना के सर्वांगीण विकास के लिये प्रार्थना करते हैं l

– डॉ. सुमन कोचर