श्री अरविन्द आश्रम
सनातन दिव्य और चिन्मय भारत के निर्माण में ऋषियों द्वारा संस्थापित संचालित आश्रमों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
पुद्दुचेरी स्थिति श्री अरविन्द आश्रम विकास की कड़ी में श्रीमाँ-श्री अरविन्द की पूर्ण योग साधना की आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा के प्रवाह में सतत विकसित हो रहा एक आलौकिक आश्रम है।
सन् 1910 मैं श्री अरविन्द जब पांडिचेरी आये तब तीन चार सहयोगी नवयुवक परिवारिक भावना से उनके साथ रहते थे। वे श्री अरविन्द की शिक्षाओं, दिव्य विचारों और एक नये मानव की परिकल्पना के प्रति आकर्षित होते गये। l 1920 में जब श्री माँ फ्रांस से स्थायी रूप से भारत आ गई तब शिष्यों की संख्या तेज़ी से बढ़ने लगी ।
श्री माँ- श्री अरविन्द की साधना का प्रभाव ज्यों-ज्यों फैलता गया, वहाँ का वातावरण उनकी दिव्य उपस्थिति से घनीभूत होता गया। आध्यात्मिक जीवन के जिज्ञासु और अभीप्सु सहज यहाँ आने लगे। इस प्रकार वे आश्रम के अंग और यंत्र बन गये। एक सामूहिक आध्यात्मिक जीवन मूर्त रूप लेने लगा।
श्री माँ श्री अरविन्द का उद्देश्य धरती पर एक महानतर तथा व्यापक रूप से ऐसा भागवत-परिवार विकसित करना था, जिसका प्रत्येक सदस्य ( सभी आयु वर्ग के लोग, बच्चे तथा स्त्री-पुरुष सभी समान रूप से) अपने अंदर ईश्वर प्रदत्त शक्ति, क्षमता और संभावना को स्वयं खोजे तथा भावी विकास के लिये उसे एकाग्रता, ज्ञान, भक्ति और कर्म द्वारा स्वयं विकसित और प्रकट करे।
इस तरह इस आश्रम का स्पष्ट भाव है कि व्यक्ति फिजूल के दिखावे तथा भौतिक झंझटों से ऊपर उठे।
जीवन के सभी कर्मों को करते हुए भगवान की उपस्थिति को अनुभव करे। भगवान के कार्य के लिये समय निकाले और भगवान के यंत्र बनें।
संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिये यहाँ एक ही संदेश है। व्यक्ति स्वयं अपनी आंतर चेतना और प्रकृति का सर्वांगीण रूपांतरण का अभीप्सु बने। ताकि साधना द्वारा उच्चतम चेतना को उतारकर आध्यात्मिक अनुभूति के आधार पर उसे भौतिक अस्तित्व में दिव्य जीवन की उपलब्धि हो ।
श्री मां – श्री अरविन्द का एक ही संकल्प था कि संसार में एक ऐसा स्थान हो जहाँ समूचे संसार के जिज्ञासु, अभीप्सु पूरी स्वतंत्रता के साथ एक मात्र सत्ता-परम सत्य की आज्ञा का पालन करते हुए जीवन जियें। जहाँ बच्चे भी अपनी आत्मा को पहचानें अपने अंदर आत्मा की आवाज सुनें और अपनी प्रज्ञा के आदेश का पालन करें। यहाँ प्रतियोगिता और संघर्ष की जगह भ्रातृ-भाव को विकसित करने की अवधारणा को बल दिया गया है। इसीलिए यहाँ कभी जात-पात, ऊँच- नीच, धन और दारिद्र का विचार कहीं दिखाई नहीं देता है। यहाँ पूजा पाठ ,जप-तप, यज्ञ-अनुष्ठान ,भजन -कीर्तन,या अन्य कोई क्रियाएं या विधि-विधान नहीं है ।l हर एक को अपने स्वभाव के अनुसार साधना और प्रगति करने का मौका दिया जाता है ।
यहाँ प्रवेश करते ही ऐसा लगता है जैसे किसी दिव्य शक्ति ने उसके अंदर के बंद पट खोल दिए हैंl व्यक्ति जो वर्षों की तपस्या या यौगिक क्रियाओं द्वारा नहीं पा सकता । केवल यहाँ आने मात्र से उसकी सहज अनुभूति होने लगती है। लेकिन जिनकी चेतना खुली होती है वह तो सचमुच श्री मां के दिव्य बालक बन जाते हैं।
यहाँ योग का एक ही उद्देश्य है मानव के ऊपर एक ऐसे दिव्य – मानव की प्रजाति तैयार करने का प्रयत्न करना जो उसे मानवता और समाज को विकास के आगामी उच्चतर स्तर के लिए तैयार कर सकेl । यह आश्रम वैराग्य या संसार के त्याग के लिए नहीं है ।यहाँ योग चेतना और योग शक्ति द्वारा मानव के जीवन को दिव्य बनाने की तैयारी है।यहाँ जीवन का लक्ष्य और वास्तविक आध्यात्मिकता बिल्कुल स्पष्ट हैl
यह मानव निर्माण की तथा व्यापक एवं जीवंत अर्थों में अतिमानसिक योग की अनोखी प्रयोगशाला है ।यहाँ आकर मानव अपने अंदर दोनों तरह के तत्व-अनुकूल और प्रतिकूल को देखने के प्रति जागृत होता है। उन पर विजय प्राप्त करने की शक्ति भी प्राप्त करता है ।
कठिनाइयों से भागने वाले के लिए यहाँ कोई स्थान नहीं है ।भगवान के प्रेम और संरक्षण का आनंद यहाँ सदैव मौजूद है। इस दृष्टि से बड़े और कठिन परीक्षण यहाँ हो रहे हैं।
यहाँ मानव को आंतरिक और बाह्य मुद्दों पर विजय प्राप्त करने का एक ही मंत्र है –
- श्रीमां का सतत स्मरण और आव्हान –
इस तरह श्री अरविंद आश्रम भगवती माता की शक्ति और उपस्थिति का दिव्य प्रतीक है ।l यहाँ का प्रत्येक साधक उनके पद्-चरणों में बैठकर सदैव सेवा, सहयोग, रूपांतरण, और समर्पण के लिए तत्पर है। 24 नवंबर 1926 को श्री अरविंद की देह में जब योगेश्वर ‘श्री कृष्ण’ की चेतना का अवतरण हुआ और उन्हें ‘अधिमानस’ की अलौकिक सिद्धि की प्राप्ति हुई तब श्री अरविंद एकांतवास में चले गये। उन्होंने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया और इसी वर्ष श्री मां के दिव्य प्रभावशाली नेतृत्व में आश्रम की नींव पड़ी। एक सहृदया करुणामयी मां की तरह वे अपनी प्रत्येक संतान और साधक का ध्यान रखने लगी।
श्री अरविंद और श्री मां पांडिचेरी में अपने प्रवास के दौरान अधिकतर आश्रम के मुख्य भवन में रहे। इस भवन के भीतरी प्रांगण में श्री अरविंद और श्री मां की समाधि हैl इसमें एक के ऊपर एक दो कक्ष है। आश्रम दर्शनार्थियों के लिये प्रतिदिन प्रातः 8:00 बजे से शाम 8:00 बजे तक खुला रहता है।
आश्रम का एक रजिस्टर्ड ट्रस्ट है जिसकी स्थापना स्वयं श्री मां ने की थी। आश्रम के कई स्थाई निवासी भी है। ये पांडिचेरी में सर्वत्र अनेक भवनों में रहते और काम करते हैं। श्री मां के समर्पण और त्याग की अमृत बूंदों से सिंचित श्री अरविंद आश्रम दिव्य कोटि का है यहाँ हर कर्म, वस्तु, व्यक्ति का समान रूप से सम्मान है। हर एक चीज अपने सच्चे रूप में और उचित स्थान पर रहे, यही इसकी निराली बात है ।
प्रत्येक आश्रमवासी अपने लिए उपयुक्त कार्य का चुनाव करता है। और उसे नि:स्वार्थ सेवा-भाव तथा पूर्णता के साथ सम्पन्न करता है ।ऐसा करते हुए वह इस बात को कभी नहीं भूलता कि यहाँ कर्म का बड़ा महत्व है या सच्ची भावना से किया गया कर्म ही ध्यान है ।अरविंद आश्रम के अनेक विभाग है ।l
श्रीअरविंद अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र-
श्री अरविंद मानते थे कि भविष्य की मानवता के निर्माण का एक सर्वोत्तम साधन है- एक नए शिक्षा केंद्र की स्थापना। इसी उद्देश्य को साकार बनाने के लिए श्री माँ ने 1943 में उक्त केंद्र की स्थापना की। यह केंद्र आश्रम का अभिन्न अंग है तथा शिक्षा के सभी पक्षों के बारे में नए प्रयोग एवं अनुसंधान के अवसर प्रदान करता है । इस समय इस केंद्र में 100 से अधिक शिक्षक तथा लगभग 500 छात्र हैं और नर्सरी से लेकर उच्चतर शिक्षा तक के लिए व्यवस्था है।
यहाँ कला विषयों और विज्ञान, भाषाओं ,इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी ,ललित -कलाओं ,संगीत ,नृत्य ,खेलकूद तथा व्यवहारिक और हस्तकला के लिए सुविधाएं हैं। एक अच्छा पुस्तकालय और सुसज्जित प्रयोगशाला भी है। पढ़ाई का सामान्य माध्यम अंग्रेजी और फ्रेंच है। इनके अतिरिक्त बच्चों को यहाँ अपनी मातृभाषा और संस्कृत सीखने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। सभी स्तरों पर शिक्षा निःशुल्क है किंतु रहने और भोजन आदि की व्यवस्था के लिए मामूली-सी फीस ली जाती है। शिक्षा यहाँ परीक्षा में उत्तीर्ण होने, प्रमाण पत्र प्राप्त करने अथवा ऊंचे पद पाने के लिए नहीं दी जाती, बल्कि नई क्षमताओं के विकास के लिए दी जाती है। शिक्षक अनुदेशक या कार्याधिकारी नहीं बल्कि सहायक और मार्गदर्शक होता है।
आश्रम के विभागों की यात्रा-
इच्छुक व्यक्ति प्रातः 8:15 बजे आश्रम के स्वागत कक्ष द्वारा आयोजित यात्रा में शामिल होकर कुछ विभागों को देख सकते हैं। परिचय के लिए एक साधक साथ में जाता है ।बस द्वारा इस यात्रा में लगभग 3 घंटे लगते हैं दर्शन दिवसों तथा अवकाश के दिन ऐसी यात्रा का प्रावधान नहीं है ।
आगंतुकों के लिए आवास व्यवस्था –
पांडिचेरी में श्री अरविंद आश्रम और श्री अरविंद सोसायटी की ओर से कई अतिथि गृह संचालित होते हैं। इनके लिये शुल्क इनमें प्रदत्त सुविधाओं के अनुसार होता है। भोजन की व्यवस्था या तो अतिथि गृहों में या आश्रम के भोजनालय में की जा सकती है । स्थान पहले से आरक्षित करवा लेना अच्छा होता है।
आगंतुक जिन अतिथि गृहों में ठहरते हैं, उनसे उन्हें एक पास मिलता है। जिसको अपने प्रवास-काल में साथ रखना होता है। पास-धारियों के लिए आश्रम के द्वार प्रातः 6:00 से रात्रि 10:00 बजे तक खुले रहते हैं।
आगंतुक आश्रम द्वारा आयोजित वार्ताओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संध्याकालीन सामूहिक ध्यान में शामिल हो सकता है । व्यक्ति अपने जन्म दिवस पर श्री अरविंद के कक्ष में जाने के लिए विशेष पास प्राप्त कर सकते हैं ।पुस्तकालय और वाचनालय का लाभ ले सकते हैं । वे यहाँ अधिक समय रहकर आश्रम के विभागों में कोई भी कार्य समर्पण भाव से कर सकते हैं।
श्री अरविंद आश्रम में जात-पात, ऊंच-नीच, देशी-विदेशी या स्त्री-पुरुष के भावों को कोई स्थान नहीं है। हो सकता है जिसके पास आप बैठकर भोजन कर रहे हों, वह चमार हो, ब्राह्मण हो, गरीब या अमीर हो। यहाँ कोई कुछ भी जानने की परवाह नहीं करता , “जात -पात पूछे नहीं कोई ,”हरि को भजे ,सो हरि को होई।
एक बार स्वयं गांधी जी ने कहा था –
“छुआछूत की समस्या को हल करने के लिये मैं इतना प्रयास कर रहा हूँ फिर भी कठिनाइयां कम नहीं होती। यहाँ माताजी ने न जाने क्या कर दिया कि यह प्रश्न ही नहीं उठता”।
आश्रम में महत्वपूर्ण दिवस –
दर्शन दिवस –
21 फरवरी – श्री मां का जन्मदिन
24 अप्रैल – श्री मां का पांडिचेरी में स्थायी रूप में आगमन ।
15 अगस्त – श्री अरविंद का जन्मदिन
24 नवंबर – सिद्धि दिवस
अन्य विशेष दिन –
29 फरवरी – अतिमानस अवरोहण
17 नवंबर – श्री मां का भौतिक शरीर से प्रत्याहार
20 नवंबर – श्री मां का महासमाधि दिवस
5 दिसंबर – श्री अरविंद का भौतिक शरीर से प्रत्याहार
9 दिसंबर – श्री अरविंद का महासमाधि दिवस
उक्त दिवसों पर आश्रम में सामूहिक ध्यान होता है। दर्शनार्थी इनमें से अधिकतर दिनों में श्रीअरविंद के कक्ष में और 21 फरवरी 29 फरवरी तथा 17 नवंबर को श्री मां के कक्ष में भी जा सकते हैं ।
अन्य विशेष दिवस –
28 फरवरी – ओरोविल का स्थापना दिवस
4 अप्रैल 1910 – श्री अरविंद पांडिचेरी आगमन
29 मार्च 1914 – श्री मां का प्रथम बार भारत आगमन
1 व 2 दिसंबर – ‘श्री अरविंद-शिक्षा-केंद्र’ की स्थापना का वार्षिक दिवस (सांस्कृतिक व शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों का आयोजन होता है।)
नववर्ष आगमन – प्रातः 6:00 बजे संगीत के साथ सामूहिक ध्यान
प्रकाशन और श्रव्य -दृश्य -सामग्री –
श्री अरविंद और श्री मां से संबंधित पुस्तक ,पत्रिका ,कैसेट ,वीडियो कैसेट खरीदना चाहते हैं वे इन्हें श्री अरविंद बुक्स डिस्ट्रीब्यूशन एजेंसी (शब्दा) पांडिचेरी – 605002 से प्राप्त कर सकते हैं ।
पत्रिकाएं –
1 ऑल इंडिया मैगजीन -अंग्रेजी तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका (हिंदी में मासिक अग्निशिखा )
2 मदर इंडिया (मासिक)
3 श्री अरविंद अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र की बुलेटिन (अंग्रेजी, फ्रेंच एवं हिंदी में ) ।
पुस्तकें –
माताजी और श्री अरविंद के प्रायः सभी ग्रंथ हिंदी / अंग्रेजी में उपलब्ध हैं ।
विशेष – पोंडिचेरी को एक समय पुद्दुचेरी (नया नगर) भी कहा जाता था। पांडिचेरी मद्रास के दक्षिण में बंदरगाह वाला एक नगर है । दंतकथा है कि प्राचीन काल में इसे ‘वेदपुरी’ कहा जाता था। जहाँ सुविख्यात अगस्त्य मुनि का आश्रम था ।पांडिचेरी मद्रास से रेल पथ और सड़क मार्ग द्वारा (160 किलोमीटर) जुड़ा हुआ है । यहाँ विमान सेवा भी उपलब्ध है।