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The Mother
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Sri Aurobindo

"All Life is Yoga” – Sri Aurobindo

"To know is good, to live is better, to be, that is perfect." – The Mother

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"All Life is Yoga” – Sri Aurobindo

"To know is good, to live is better, to be, that is perfect." – The Mother

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New words are needed to express new ideas, new forms are necessary to manifest the new forces - The Mother
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Sri Aurobindo Society

Aim and Objective

श्री अरविन्द सोसायटी की स्थापना का लक्ष्य और उद्देश्य

श्री अरविंद सोसायटी एक रजिस्टर्ड सोसायटी है जिसका मुख्य व्यवस्थात्मक कार्यालय  पुद्दुचेरी में है। इसके अन्तर्गत भारत में तथा भारत से बाहर अनेक केन्द्र एवं शाखाएं हैं l इसके  अनेक सदस्य है। श्री अरविंद सोसायटी की संस्थापक एवं स्थायी अध्यक्षा श्रीमां है।

श्री अरविन्द सोसायटी की स्थापना सन 1960 में श्री मां ने की । इसका उद्देश्य श्री अरविन्द के दिव्य विचारों, आदर्शों, महान शिक्षाओं तथा उनकी पूर्ण योग की साधना पद्धति से प्रत्येक को अवगत कराना तथा दैनिक जीवन में उतारने हेतु प्रेरित करना, ताकि मानव समाज अशांति, अज्ञान, अविद्या, अहंकार, अंधकार, रोग, शोक, जरा आदि से मुक्त होकर दिव्य शांति, सत्य, प्रेम, शक्ति, प्रकाश और ऊर्जा को प्राप्त कर आनंदमय जीवन जी सके।

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The Mother
श्री माँ

श्री माँ(मीरा) का जन्म पेरिस (फ्रांस) में 21 फरवरी 1878 को हुआ था। उनके पिता अल्फासा तुर्क बैंकर थे। माता मातील्द इस्लामुन (मिस्त्री) काहीरा की थी। इन्हें दो संतानें हुई। मातिओ और मीरा। मीरा के जन्म के एक वर्ष पूर्व ही माता-पिता फ्रांस आकर बस गये थे। मीरा की माँ अत्यन्त सुंदर, सुसंस्कृत, अनुशासन प्रिय तथा आधुनिक विचारों की थी।

श्री माँ  (मीरा) ने बहुत छोटी उम्र में ही अक्षर ज्ञान के पूर्व ही ध्यान करना सीख लिया था। श्री माँ के शब्दों में –मैंने चार वर्ष की आयु से चिंतन तथा अपना योग करना शुरू कर दिया था। मीरा के अनुसार –मेरी एक कुर्सी थी जिस पर मैं ध्यान में तल्लीन होकर शांत बैठा करती थी। तब मेरे सिर के ऊपर बहुत चमकीली ज्योति अवतरित होती थी। जो दिमाग के भीतर कुछ हलचल पैदा करती थी।

(श्री माँ) मीरा बचपन से ही अन्य बालकों से अलग थी। जहाँ छोटे बच्चे खेल-कूद, मज़ाक-मस्ती की ज़िंदगी जीते हैं मन पसंद की चीजों को प्राप्त करना उनका ध्येय होता है। वहाँ छोटी-सी मीरा अक्सर गहरे ध्यान में चली जाती थी। मीरा बहुत सचेतन, गंभीर, चिंतनशील दृढ़ संकल्पी और योगी स्वभाव की थी। बहुत छोटी उम्र में उन्हें असाधारण स्वप्न, अंतर्दर्शन और आध्यात्मिक अनुभूतियाँ हुआ करती थी। इसी समय उन्हें धरती पर अपने जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य का ज्ञान और भान हो चुका  था ।

भारत के प्रति उनका प्रेम और सम्मान अतुलनीय है। वे भारत को विश्व गुरु मानती थी। श्रीमाँ के असीम प्रेम,त्याग और आत्मबलिदान ने ही श्रीअरविन्द को विश्व के समक्ष अभिव्यक्त किया अन्यथा सारा जगत श्री अरविन्द के जीवन की दिव्यता, उनके पूर्ण योग की साधना और ईश्वर निर्दिष्ट कार्य से अनभिज्ञ रह जाता। हम सब श्री माँ के चिर ऋणी हैं।

Sri Aurobindo
श्री अरविन्द

श्रीअरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 को कलकत्ता (भारत) में हुआ था। पिता डॉ॰ कृष्णधन घोष ने उन्हें 7 वर्ष की आयु में उनके दो बड़े भाइयों के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त करने लंदन भेज दिया। लंदन में सेंटपॉल तथा केम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज में इस  प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थी ने जीवन में अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच भाषा में दक्षता प्राप्त की तथा जर्मन, इटालियन और स्पेनिश भाषाओं का ज्ञान भी प्राप्त किया तथा अध्ययन के साथ ही प्राचीन, मध्ययुगीन तथा आधुनिक यूरोप की संस्कृति का अंतरंग परिचय प्राप्त किया।

श्रीअरविन्द जब दस वर्ष के हुए तब तक उन्होंने शेक्सपियर, किट्स, शैली, बाईबिल आदि ग्रंथ पढ़ लिये। साहित्य पढ़ने की लगन से अल्पायु में ही काव्य लेखन की रुचि भी जागृत हो गई।

14 वर्ष इंग्लैंड में उच्च पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात 21 वर्षीय युवक श्रीअरविन्द 1893 में भारत आये। बंबई के अपोलो बंदरगाह पर जैसे ही उतरे उन्हें अपने अंदर एक दिव्य शांति की अलौकिक शक्ति की अनुभूति हुई।

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दिव्य यात्रा - श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर ( म. प्र. )

सन् 1968 से आज तक

7 दिसंबर सन् 1950 शाजापुर म.प्र. में स्वतन्त्रता सेनानी, आयुर्वेदाचार्य और हौमयोपेथिक चिकित्सक श्री डॉ. बी.एल.गुप्ता दादाजी अपने गुरु विश्मात्मा ॐ श्री जी (भगवन्) के साथ ध्यान – साधना में रत थे तभी महायोगी श्रीअरविन्द के स्वर्णिम तेजोमय प्रकाश का उन्हें दर्शन हुआ वह दिव्य तेजोमय प्रकाश आकाश मार्ग से आकर उनकी देह में प्रवेश कर गया यह एक अलौकिक अनुभव था एक दिन सायंकालीन साधना में भगवन् ने दादाजी से कहा – दादा आपको पांडिचेरी जाकर श्री माँ का दर्शन कर आगे की साधना के लिये दिशा – दर्शन लेना है। अब आपको साधना में आगे का दिशा – दर्शन वे ही देंगी! 

दादाजी ने सन् 1965 में श्री माँ को एक पत्र लिखा –माँ ! पिछले कुछ दिनों से मेरी आध्यात्मिक  साधना अवरुद्ध हो गई है कई अदिव्य शक्तियां मुझे घसीट रही है मैं अपनी करुण पुकार आपके पाद- पद्मों में निवेदन कर रहा हूँ मेरी सहायता करो 

सन् 1986 में दादाजी ने युवा वर्ग में देवत्व के जागरण के लिये – देवबाला संघ , देवबाल संघ , और नारी शक्ति संघ की स्थापना की आज ये तीनों संघ श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर ( म.प्र.) के अंग बनकर श्री माँ का दिव्य कार्य कर रहे हैं आज समूचे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक स्थानों पर ये सभी आत्माएँ श्री माँ का दिव्य कार्य करते हुए साधना तथा अपनी चेतना के दिव्य रूपांतरण के प्रति सचेतन है और श्री माँ की उपस्थिति को अनुभव कर रही है

दिव्य स्वप्न साकार होने का भागवत मुहूर्त आया है श्री अरविन्द की असीम कृपा और आशीर्वाद से श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर एअरपोर्ट के निकट छोटा बांगड़दा में अपने स्वामित्व के 13,495 वर्ग फीट भूखंड पर अतिशीघ्र ‘श्रीअरविन्द -विश्व –निलयम्’ का नव निर्माण कर रही है जहाँ सोसायटी श्री माँ – श्री अरविन्द के दिव्य-ग्रंथों की लायब्रेरी तथा श्री अरविन्द के दिव्य –  देहांश की स्थापना करने हेतु कृत संकल्पित है आइये, समूचे विश्व की मानव चेतना के रूपान्तर की साधना और सर्वांगीण विकास की नवीन गतिविधियों में हम  सब सहभागी बनकर इस दिव्य यात्रा की एक स्वर्णिम कड़ी बनें ।

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