"All Life is Yoga” – Sri Aurobindo
"To know is good, to live is better, to be, that is perfect." – The Mother
"To know is good, to live is better, to be, that is perfect." – The Mother
"All Life is Yoga” – Sri Aurobindo
Sri Aurobindo Society
Aim and Objective
श्री अरविन्द सोसायटी की स्थापना का लक्ष्य और उद्देश्य
श्री अरविंद सोसायटी एक रजिस्टर्ड सोसायटी है जिसका मुख्य व्यवस्थात्मक कार्यालय पुद्दुचेरी में है। इसके अन्तर्गत भारत में तथा भारत से बाहर अनेक केन्द्र एवं शाखाएं हैं l इसके अनेक सदस्य है। श्री अरविंद सोसायटी की संस्थापक एवं स्थायी अध्यक्षा श्रीमां है।
श्री अरविन्द सोसायटी की स्थापना सन 1960 में श्री मां ने की । इसका उद्देश्य श्री अरविन्द के दिव्य विचारों, आदर्शों, महान शिक्षाओं तथा उनकी पूर्ण योग की साधना पद्धति से प्रत्येक को अवगत कराना तथा दैनिक जीवन में उतारने हेतु प्रेरित करना, ताकि मानव समाज अशांति, अज्ञान, अविद्या, अहंकार, अंधकार, रोग, शोक, जरा आदि से मुक्त होकर दिव्य शांति, सत्य, प्रेम, शक्ति, प्रकाश और ऊर्जा को प्राप्त कर आनंदमय जीवन जी सके।
The Mother
श्री माँ
Sri Aurobindo and the Mother strove together to embody and manifest upon earth this Divine Consciousness, with the Ashram as the starting point.
It was the Mother who, along with Sri Aurobindo, planted the seeds of a new way of life founded on this higher consciousness. It was her drive, her force, her guidance that made things happen.
From the smallest insignificant detail to the overseeing of every aspect of maintaining the Ashram, from interacting with the children of the Centre of Education to the supervising of the athletic competitions in the sports ground—she was there, fully present, to see that everything is raised to its utmost perfection.
Just as Sri Aurobindo once said that his life “has not been on the surface for man to see”, it is indeed equally difficult to describe the Mother’s life as well. And yet, we may mention a few significant dates and features of her extraordinary life.
Sri Aurobindo
श्री अरविन्द
Sri Aurobindo was born in Calcutta on 15 August 1872. At the age of seven he was taken to England for education. There he studied at St. Paul’s School, London, and at King’s College, Cambridge. Returning to India in 1893, he worked for the next thirteen years in the Princely State of Baroda in the service of the Maharaja and as a professor in Baroda College. During this period he also joined a revolutionary society and took a leading role in secret preparations for an uprising against the British Government in India.
Sri Aurobindo had begun the practice of Yoga in 1905 in Baroda. In 1908 he had the first of several fundamental spiritual realisations. In 1910 he withdrew from politics and went to Pondicherry in order to devote himself entirely to his inner spiritual life and work. During his forty years in Pondicherry he evolved a new method of spiritual practice, which he called the Integral Yoga. Its aim is a spiritual realisation that not only liberates man’s consciousness but also transforms his nature. In 1926, with the help of his spiritual collaborator, the Mother, he founded the Sri Aurobindo Ashram. Among his many writings are The Life Divine, The Synthesis of Yoga and Savitri. Sri Aurobindo left his body on 5 December 1950.
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दिव्य यात्रा - श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर ( म. प्र. )
सन् 1968 से आज तक
7 दिसंबर सन् 1950 शाजापुर म.प्र. में स्वतन्त्रता सेनानी, आयुर्वेदाचार्य और हौमयोपेथिक चिकित्सक श्री डॉ. बी.एल.गुप्ता दादाजी अपने गुरु विश्मात्मा ॐ श्री जी (भगवन्) के साथ ध्यान – साधना में रत थे । तभी महायोगी श्रीअरविन्द के स्वर्णिम तेजोमय प्रकाश का उन्हें दर्शन हुआ । वह दिव्य तेजोमय प्रकाश आकाश मार्ग से आकर उनकी देह में प्रवेश कर गया । यह एक अलौकिक अनुभव था । एक दिन सायंकालीन साधना में भगवन् ने दादाजी से कहा – दादा आपको पांडिचेरी जाकर श्री माँ का दर्शन कर आगे की साधना के लिये दिशा – दर्शन लेना है। अब आपको साधना में आगे का दिशा – दर्शन वे ही देंगी ।
दादाजी ने सन् 1965 में श्री माँ को एक पत्र लिखा – “माँ ! पिछले कुछ दिनों से मेरी आध्यात्मिक साधना अवरुद्ध हो गई है । कई अदिव्य शक्तियां मुझे घसीट रही है । मैं अपनी करुण पुकार आपके पाद- पद्मों में निवेदन कर रहा हूँ । मेरी सहायता करो ।”
प्रत्युत्तर में श्री माँ ने लिखा – “ एक दिन अवश्य आयेगा ,जब प्रेम इस जगत को मृत्यु से मुक्त कर देगा ।” गुरु (भगवन्) सेतु बने दादाजी को श्री माँ के दिव्य चरणों तक पहुचाने में ।
सन् 1968 में 21 फ़रवरी श्री माँ के जन्म – दिवस पर दादाजी के साथ कुछ साधक श्री माँ के दर्शन हेतु पांडिचेरी गये । सबने प्रथम बार श्री माँ का गैलरी – दर्शन किया । 25 फरवरी को सभी साधक श्री माँ के दर्शन हेतु श्री माँ के कक्ष के बाहर कतार में खड़े थे । दादाजी कतार के अंत में थे । श्री माँ ने सभी के चित्र देखे और एक साधक से कहा – वह जो सबसे अंत में खड़े हैं – डॉ. भंवरलाल । उन्हें बुलाओ । साधक भी आश्चर्य चकित था ! श्री माँ ने कक्ष में बैठे – बैठे यह कैसे जान लिया ! दादाजी श्री माँ के कक्ष में गये । दिव्य सौन्दर्यमयी श्री माँ कुर्सी पर विराजमान थी । आत्म -विभोर दादाजी ने विनम्र भाव से उनके श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया । दादाजी माँ – माँ का उच्चारण कर बच्चे की तरह फूट – फूटकर रोने लगे और श्री माँ के चरणों को अपनी अश्रुधारा से भिगोते रहे । श्री माँ ने स्वयं उन्हें कंधे से पकड़कर ऊपर उठाया और अपनी स्थिर दृष्टि से दादाजी के नेत्रों में देखती रही ।
श्री माँ ने एक दिव्य , मधुर मुस्कान के साथ अपनी अपार कृपा के दिव्य हाथ दादाजी के मस्तक पर रख दिये । दादाजी ने श्री माँ के रूपान्तरकारी दिव्य स्पर्श से अपनी आंतर चेतना और देह में एक अवर्णनीय – अलौकिक प्रकाश तथा रूपान्तरकारी शक्ति का जीवंत अनुभव किया । मानो श्री माँ ने एक जादूई कुंजी अचानक हाथ में दे दी । श्री माँ ने स्वयं दादाजी को अपने दिव्य हस्त कमलों से आशीर्वाद लिखकर पुष्प सहित प्रदान किए ।
श्री माँ के आशीर्वाद और आज्ञा से सन् 1968 में इन्दौर (म. प्र.) में श्री डॉ. बी.एल. गुप्ता दादाजी ने श्री अरविन्द सोसायटी की स्थापना की । श्री माँ ने स्वयं उन्हें सचिव नियुक्त किया । ऊर्जावान दादाजी ने श्री माँ के सच्चे बालक , सेवक तथा साधक के रूप में सबको दिव्य – प्रेम के सूत्र में बांधकर सतत् 34 वर्षों तक मानव चेतना के समग्र विकास हेतु बहुआयामी गतिविधियों को साधना के रूप में सम्पन्न किया। नियमित आतंरिक साधना के साथ -साथ बाह्य गतिविधियों का कार्य भी तीव्र गति से होने लगा ।
साधक जुड़ने लगे और एक दिव्य समाज संगठित होने लगा । श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर शाखा ने नये – नये क्षेत्रों में चरण बढ़ाए। सभी में श्रद्धा , प्रेम और भक्ति के साथ ज्ञान की अभिवृद्धि होने लगी । समय – समय पर श्री अरविन्द आश्रम तथा श्री अरविन्द सोसायटी पुद्दुचेरी से श्रीमाँ – श्रीअरविन्द के भक्त साधकों का इन्दौर में आगमन हुआ । जिनमें – श्रद्धेय श्री चम्पकलालजी, श्रीचन्द्रदीपजी, विद्यावती जी ‘कोकिल’, श्री नवजातजी , श्री छोटेनारायणजी शर्मा , श्री महेश्वरीजी , श्री एम.पी. पंडित , श्री प्रदीप नारंग , श्री अलोक पाण्डेय , श्रीमति ज्योतिबेन थानकी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । नियमित साधना , प्रार्थना , ध्यान , अध्ययन , सत्संग , संगोष्ठियों , अखिल भारतीय साधना – सम्मेलनों , व्याख्यान – मालाओं , समाचार – पत्रों में आलेख – प्रकाशन , विद्यालयों , महाविद्यालयों , संस्थाओं में शिक्षा , सर्वांगीण – स्वास्थ्य, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, नेचुरोपैथी की चिकित्सा, जीवन – प्रबंधन, पर्यावरण, प्राकृतिक जीवन – शैली, ललित – कला एवं संस्कृति, गर्भ – विज्ञान, प्रसव पूर्व शिक्षा, योगासन, प्राणायाम ध्यान – शिविरों, प्रदर्शनियों, बालक, युवा तथा नारी वर्ग के सर्वांगीण – विकास – कार्यक्रमों के आयोजन होते रहे तथा सभी को श्री माँ की दिव्य उपस्थिति की अनुभूति होती रही ।
सन् 1986 में दादाजी ने युवा वर्ग में देवत्व के जागरण के लिये – देवबाला संघ , देवबाल संघ , और नारी शक्ति संघ की स्थापना की । आज ये तीनों संघ श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर ( म.प्र.) के अंग बनकर श्री माँ का दिव्य कार्य कर रहे हैं । आज समूचे देश में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक स्थानों पर ये सभी आत्माएँ श्री माँ का दिव्य कार्य करते हुए साधना तथा अपनी चेतना के दिव्य रूपांतरण के प्रति सचेतन है और श्री माँ की उपस्थिति को अनुभव कर रही है ।
मानव चेतना के दिव्य रूपान्तर और भगवान् की अभिव्यक्ति हेतु एक विशाल आध्यात्मिक , दिव्य – ऊर्जा – केंद्र के निर्माण का दिव्य संकल्प और तीव्र अभीप्सा दादाजी के अन्दर स्वत: स्फूर्त हो उठी । सभी साधक इस संकल्प के मूर्तिमान होने के दिव्य स्वप्न देखने लगे । शनैः शनैः श्रीमाँ – श्रीअरविन्द के कार्य तथा आध्यात्मिक गतिविधियों के विस्तार हेतु एक विशाल दिव्य परिसर की आवश्यकता अनुभव हुई।
दिव्य स्वप्न साकार होने का भागवत मुहूर्त आया है । श्री अरविन्द की असीम कृपा और आशीर्वाद से श्री अरविन्द सोसायटी इन्दौर एअरपोर्ट के निकट छोटा बांगड़दा में अपने स्वामित्व के 13,495 वर्ग फीट भूखंड पर अतिशीघ्र ‘श्रीअरविन्द -विश्व –निलयम्’ का नव निर्माण कर रही है । जहाँ सोसायटी श्री माँ – श्री अरविन्द के दिव्य-ग्रंथों की लायब्रेरी तथा श्री अरविन्द के दिव्य – देहांश की स्थापना करने हेतु कृत संकल्पित है । आइये, समूचे विश्व की मानव चेतना के रूपान्तर की साधना और सर्वांगीण विकास की नवीन गतिविधियों में हम सब सहभागी बनकर इस दिव्य यात्रा की एक स्वर्णिम कड़ी बनें ।
Videos by Dadaji
Integral Yoga Talks by Dr. B.L. Gupta (Dadaji) Devotee of The Mother and Sri Aurobindo
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श्री अरविंद सोसायटी एक रजिस्टर्ड सोसायटी है जिसका मुख्य व्यवस्थात्मक कार्यालय पुद्दुचेरी में है। इसके अन्तर्गत भारत में तथा भारत से बाहर अनेक केन्द्र एवं शाखाएं हैं l इसके अनेक सदस्य है। श्री अरविंद सोसायटी की संस्थापक एवं स्थायी अध्यक्षा श्रीमां है।
वर्तमान पता:
(आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के सामने) , गोराकुंड,
इंदौर ( म. प्र.) – 452002
9826066520 मनोज कियावत