Daily Quotes

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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

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दिव्य देहांश (दिव्यांश) का महत्व

श्री अरविन्द के दिव्य देहांश

श्री मां ने कहा है कि श्री अरविन्द के शरीर का प्रत्येक और हर एक अणु अतिमानसिक चेतना से परिपूर्ण था । हम जानते हैं कि जब उन्होंने शरीर त्यागा उसी क्षण से शरीर आतिमानसिक प्रकाश से दमक रहा था । ‘चेतना’ मृर्त्य वस्तु नहीं है जो भौतिक शरीर की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है यदि ऐसा होता तो जब हम समाधि को स्पर्श करते हैं तो इतनी असाधारण शक्ति और बाल का अनुभव नहीं करते। हमने देखा है कि जहां-जहां पवित्र दिव्यांश पधराये गये, वहां-वहां ऐसी शांति तथा शक्ति विराजती है। अतः दिव्यांश मात्र स्मृति चिन्ह नहीं होते, दिव्यांश श्री अरविन्द की जीवन्त उपस्थिति है जो उनके सारे जीवन की साधना के प्रकाश और शक्ति से अनुप्राणित होते हैं वैसे ही जैसे एक अणु अपने अंदर अनंत शक्ति लिए रहता है दिव्यांश के पीछे यही सत्य होता है अतः इस सत्य को हमेशा जीवन्त बनाये रखना और इसे अपेक्षित सम्मान देना चाहिए।

नीरद वरण

दिव्यांश हमें चैत्य चेतना में जीने और हमारी वांछित प्रगति को प्राकृतिक और सरल बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं। वह उनकी दिव्य महिमा के पांच तत्व – उनकी उपस्थिति, शांति, शक्ति, प्रकाश और आनंद को धरती के दिव्य रूपांतरण के लिए नीचे उतारते हैं।

महासमाधि

” तुम्हारे प्रति जो हमारे प्रभु के भौतिक आवरण रहे हो , तुम्हारे प्रति हम असीम कृतज्ञता प्रकट करते हैं । तुमने हमारे लिये इतना कुछ किया , हमारे लिये कर्म किया, संघर्ष किये, कष्ट झेले, आशा कीइतना सहन कियातुमने हम सबके लिये संकल्प कियेप्रयत्न कियेतैयारी कीहमारे लिए सब कुछ प्राप्त कियातुम्हारे आगे हम नतमस्तक हैं और यह प्रार्थना करते हैं कि हम एक क्षण के लिये भी तुम्हारे ऋण को ना भूलें । “

श्री माँ
9 दिसम्बर 1950

समाधि-मन्दिर की सार्थकता

आध्यात्मिक परम्परा अवतारों और ईश्वरीय चेतना युक्त पुरुषों के दिव्यांशों को सर्वदा अधिक महत्व और सार्थकता प्रदान करती है, और उन्हें समाधि या समाधि-मन्दिर में प्रतिष्ठापित किया गया है- यह केवल उनकी स्मृति को अमर करने के लिए नहीं, अपितु उनकी जीवंत उपस्थिति को साकार रूप देने और उनमें समाहित दैवी शक्ति जिसे वे निसृत करते हैं को हमेशा के लिए जीवित रखने को किया जाता है। ऐसे समाधि-मंदिर युगों से सत्यान्वेषियों के लिये अत्यधिक सान्त्वना, शक्ति और प्रेरणा के स्रोत रहे हैं।

समाधि-मंदिरों पर उत्कीर्ण प्रतीक सत्य का जीवंत-चित्रण और उनमे निहित शक्तियों के उद्घाटित स्वरूप हैं। इन्हें भारत में यंत्रकहा जाता है और सामान्यतः इनका उपयोग पूजा में आवाहित देवी-देवताओं के श्रीविग्रह के रूप में किया जाता है। इनकी अन्तःशक्ति एक मान्य तथ्य है।

“गुलाबी कमल श्रीअरविन्द की चेतना का प्रतीकात्मक स्वरूप है और घनाकार आकृति अतिमानसिक सत्य का प्रतीक है जिसे साकार करने के लिये उनका अवतरण हुआ। कमल की चार आन्तरिक पंखुडियाँ परम प्रभु की चार प्रमुख सृजनात्मक शक्तियों को इंगित करती हैं तथा बारह बाह्य पंखुडियाँ पूर्णता के लिये कार्यरत अभिव्यक्त शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।घनाकार आकृति के फलको पर उत्कीर्ण प्रतीक में दो प्रतिच्छेदी समबाहु त्रिभुज हैं जिनके शीर्ष उपर और नीचे की दिशा में अवस्थित हैं।अवरोही त्रिभुज सत्-चित् आनंद का प्रतिनिधित्व करता है।

आरोही त्रिभुज जीवन, प्रकाश और प्रेम के रूप में पदार्थ की ओर से उच्चाकांक्षी उत्तर का प्रतिनिधित्व करता है। दोनो त्रिभुज के संगम में बना केन्द्रीय वर्ग परिशुद्ध प्रकटीकरण का प्रतीक है जिसके केन्द्र में विद्यमान कमल परम के अवतार का प्रतिनिधित्व करता है।केन्द्रीय वर्ग के अंदर प्रदर्शित जल सृष्टि की विविधता का प्रतिनिधित्व करता है।

दिव्यांश (केश या नाखून) एक स्वर्ण-मंजूषामें रखे जाते हैं। यह चार मंजूषाओं की श्रृंखलामें सबसे अंदर स्थित होती है। स्वर्ण-मंजूषा को रजत-मंजूषा में रखा जाता है, रजत-मंजूषा को चंदन-मंजूषा के अंदर तथा चंदन-मंजूषा को गुलाब काष्ठ-मंजूषा में रखा जाता है। प्रत्येक मंजूषा के ढक्कन पर श्रीअरविन्द का प्रतीक चिन्ह उत्कीर्ण रहता है। चार मंजूषाओं की श्रृंखला श्रीअरविन्द की चेतना में अवस्थित चार स्तरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। स्वर्ण धातु अतिमानसिक चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। रजत धातु आध्यात्मिक चेतना का तथा चंदन भौतिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है।

-The Call Beyond 2008