Daily Quotes

"

When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

"

श्री अरविन्द की कविताएँ

 कवि मनीषी श्री अरविन्द की कविताएँ मूलतः अंग्रेजी में है। ये कविताएँ उनकी गहन आंतरिक और आध्यात्मिक यात्रा का प्रमाण है। इनमें उनके अन्तर्दर्शन, अनुभूति, अन्तर्बोध, अमरता एवं शाश्वतत्ता की ओर ले जाने वाले दिव्य-पथ पर बने पद-चिन्हों का दर्शन है। कवि मनीषी श्री अरविन्द अपनी कविताओं में मानव जाति को एक दिव्य संदेश देते हैं- जब मानव अपनी सत्ता का प्रत्येक स्तर, चेतना का प्रत्येक अंश, भागवत ज्ञान, दिव्य शक्ति, दिव्य प्रेम, दिव्य सौंदर्य, करुणा, प्रकाश और आनंद की ओर स्वयं खोलेगा तब उसके जीवन में शाश्वत दिवस का सूर्य उदय होगा। श्री अरविन्द की अनुपम कविताएँ मानव को सच्चे अस्तित्व की पहचान कराकर जीवन कैसे जीना ? इसका अन्तर्बोध प्रदान करती है।

श्री अरविन्द की अन्य प्रमुख कविताएँ

तू जो कि सर्वव्याप्त है समस्त निचले लोकों में ,

                फिर भी है विराजमान बहुत ऊपर,  

उन सबका स्वामी जो कार्य करते हैं शासक हैं और हैं  ज्ञानी, 

                 प्रेम का अनुचर ! 

तू जो कि एक नन्हें कीट और मिट्टी के ढेले की भी  

                नहीं करता है अवहेलना, 

इसीलिए इस विनम्रता के कारण हम जानते हैं 

               कि तू ही है परमात्मा  

अनुवाद -  विमला गुप्ता

कविता – श्री अरविन्द बेनवेनुता

 

 

 

ओ निराकार अनन्त के आराधक , रूप की उपेक्षा मत कर, रूप में ‘वही’  करता है निवास  

हर सीमित में निहित है वही गहन अपरिमित अपने पवित्र आनंद की आवृत्त आत्मा को करता हुआ संचित  

अपने ह्रदय की नीरव गहराई में यह मूर्त रूप छुपाए हुए है ‘उसकी’ रहस्यमयता की सार्थकता को, 

यह रूप ही है शाश्वतता का गृह अनोखा , उस अनश्वर एकांतवासी की एक कन्दरा  

                        

ईश्वर की गहराई में निहित है एक सौन्दर्य उस परम का अद्भुत एक विलक्षण कौतुक जो अपने निवास हेतु इस विश्व को करता है निर्मित 

वह ‘एक’ अपनी अनेकता की शोभा में, एक गुलाब के पुष्प समान रूप और रंग में होकर प्रस्फुटित,

महान विश्व - पंखुरियों को खुलने के लिए करता है बाधित  

अनुवाद - विमला गुप्ता

कविता - श्री अरविन्द बेनवेनुता                                                         

अपनी आत्मा के आलिंगन में मैं पूरा विश्व किए हूँ धारण : 

मुझमें  ‘स्वाति’  एवं  ‘पुष्य’  नक्षत्र होते हैं ज्वलन्त  

जिस किसी सजीव रूप की ओर मैं  घुमाता हूँ अपनी दृष्टि  

देखता हूँ अपने ही शरीर के साथ एक अन्य मुखाकृति

 वे सभी नेत्र जो देखते हैं मेरी ओर हैं  एकमात्र मेरे ही नेत्र; 

जो एक ह्रदय धड़कता है सबके सीने में है मेरा ही ह्रदय  

विश्व का सुख प्रवाहित होता है मदिरा की तरह मुझमें होकर, 

इसके लाखों दुःख संताप हैं मेरी ही यन्त्रणाएँ  

        

फिर भी इसकी सभी क्रियाएँ हैं मात्र लहरें जो गुज़रती हैं 

मेरी ऊपरी सतह पर ; मेरा अन्तस्थ है सर्वदा निश्चल, 

अजन्मा मैं बैठा हूँ , कालातीत, अमूर्त्त अगोचर :

समस्त पदार्थ हैं परछाइयाँ मेरे स्वच्छ दर्पण में  

           

मेरी विशाल सार्वभौमिकता विश्व का चक्र है सम्हाले;

मैं इसमे हूँ छिपा हुआ एक मोती समुद्र में जैसे   

अनुवाद -  विमला गुप्ता

कविता – श्री अरविन्द बेनवेनुता    

      ओ ‘तू’ जिसका मैं एक उपकरण हूँ ,

              ओ मुझमें निवासित रहस्यमयि आत्मा एवं प्रकृति ,

     मेरी इस सकल नश्वर सत्ता को अब घुल जाने दे 

              अपनी दिव्यता की अचल महिमा में l 

     मैंने अपने मन को बन जाने दिया तेरे मन का भूगर्भीय प्रवाह, 

            मैंने अपनी इच्छा कर दी अर्पित तेरी परम इच्छा में : 

    मेरा कुछ भी न रह जाए शेष पीछे छूटा हुआ 

           हमारी इस रहस्यमयि अनकही मिलन एकता में l 

     तेरे प्रेम की विश्व धड़कनों के साथ मेरा ह्रदय होगा स्पन्दित,

          मेरा देह बनेगा तेरा प्रमुख यंत्र  पृथ्वी कार्य हेतु ;

     मेरी नस नाड़ियों में होंगे प्रवाहित तेरे आनंद के जल प्रवाह ; 

            मेरे विचार होंगे तेरी शक्ति के निर्बन्ध प्रकाश धावक l 

    केवल मेरी आत्मा को शाश्वत काल तक छोड़ देना करने के लिए अपना आराधन 

    और तेरे हर रूप एवं आत्मा से सर्वदा होने देना उसका मिलन l 

अनुवाद -  विमला गुप्ता

कविता – श्री अरविन्द बेनवेनुता    

   

मैं भगवान का पक्षी हूँ , उसके नील आकाश में ;

देव सद्दश उत्कृष्ट एवं निर्मल

मैं गाता हूँ गीत सत्य एवं मधुरता के ,

उस महाप्रभु एवं देवदूत के श्रवण हेतु  l

मैं अग्नि के समान उठता हूँ ऊपर इस मरणधर्मा धरातल से

विषादहीन नीले नभ की ओर

और टपकाता हूँ इसके जन्म की दुःख ग्रस्त मिटटी में

परम आनंद के अग्निल - बीज  l

काल और अन्तरिक्ष के परे मेरे पंख भरते हैं उड़ान

अक्षय अनंत प्रकाश की ओर ;

मैं  ले आता हूँ  उस शाश्वत के स्वरुप का परम सुख

और आत्मा के दर्शन का वरदान  l

मैं  निरखता हूँ समस्त लोकों को अपने रक्तवर्णी नेत्रों से ;

मैंने लिया है बसेरा ज्ञान के वृक्ष पर

जो भरा हुआ है स्वर्ग के पुष्पों से

परम अनंत की जलधाराओं के तट पर  l

कुछ भी नहीं छिपा है मेरे ज्वलंत ज्योतिर्मय ह्रदय से ;

मेरा मन है असीम और निस्तब्ध ;

मेरा गीत है परम आनंद की रहस्यमयी कला ,

मेरी उड़ान है अमर संकल्प l

अनुवाद -  विमला गुप्ता

कविता – श्री अरविन्द बेनवेनुता    

काल के गतिक्रम में मैंने देखा अपने आत्मा को एक यात्री के समान

जो जन्मान्तरों से चलता रहा है ब्रह्माण्ड की राहों पर

गहराइयों  में धूमिल मलिन और शिखरों पर ज्योतिर्मय ,

यह विकसित हुआ कृमि से देवत्व में l

शाश्वत अग्नि की एक चिनगारी यह आत्मा , आया 

  निर्मित करने हेतु एक गृह उस अजन्मे’  के लिए जड़तत्व में

अचेतन सूर्यहीन महानिशा ने पायी एक प्रकाश किरण

मूक और परित्यक्त पदार्थों के जड़ बीज में

जीवन हुआ स्पन्दित और विचार ने एक देदीप्यमान स्वरूप का किया रेखांकन 

जिससे नितान्त निष्प्राण निस्पन्द पृथ्वी पर कर सके भ्रमण ,

और स्वेच्छाधारी निद्रित प्रकृति में हो सके उत्पन्न 

एक विचारशील प्राणी जिसमें हो आशा का उद्गार और जो कर सके प्रेम

अभी भी मंद गति से घटित हो रहा है यह चमत्कार ,

पंक और पाषाण में से होकर उस अज- अमर के क्रमिक जन्म का

अनुवाद -  विमला गुप्ता

कविता – श्री अरविन्द बेनवेनुता