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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"‘चैत्य ध्यान साधना’ का उद्देश्य मनुष्य जीवन में साधना के माध्यम से अपने जीवन का सच्चा, पवित्र, आंतरिक विकास करें । अपनी आन्तरिक रचना को समझें । अपने अंदर पार्श्व की गहराइयों में अवस्थित चैत्य को जाने, खोजें और उसे प्राप्त करें । चैत्य की मूल प्रकृति, गुण, शुद्ध, स्वभाव उसके दिव्य कार्य और प्रभाव के प्रति सचेतन बनें ।
मानव की सत्ता के करण– मन, प्राण और शरीर विकसित, रूपांतरित और दिव्य बने इसके लिये चैत्य का अनावृत होना आवश्यक है ।
श्रीअरविन्द ने अपने पूर्व के योग-ग्रंथों में “चैत्य” शब्द का प्रयोग मानव में निहित गुहय तत्व के लिये किया और आगे चलकर “चैत्य” शब्द का प्रयोग अंतरात्मा और सत्ता के अंतरतम भाग के लिये ही किया है ।
चैत्य क्या है ? चैत्य का मानव जीवन से क्या संबंध है ? यह जानना जरूरी है तभी हम चैत्य साधना और उसकी शक्ति के अर्थ को समझ सकेंगे।
श्रीअरविन्द ने तत्व रूप आत्मा के लिए जगह-जगह चैत्य तत्व, चैत्य सत्ता, चैत्य अस्तित्व, आत्म स्फुलिंग, आत्म तत्व, शब्दों का प्रयोग किया है । और विकसित आत्मा के लिए उन्होंने चैत्य पुरुष, चैत्य व्यक्तित्व, आत्म आकार या आत्म व्यक्तित्व शब्दों का व्यवहार किया है, यह चैत्य पुरुष है, श्रीअरविन्द के शब्दों में “ वह स्फुलिंग ” जो ज्वाला में वर्धित हो रहा है । चेतना की वृद्धि के साथ विकसित हो रहा है ।
मानव के अंदर की गहराइयों में भगवान का अंश है । अंगुष्ठ प्रमाण प्रकाशमान दिव्य लौ है मानव में जो कुछ मिथ्या, अहंकार और अदिव्य है, यह उस सबसे परे होता है । पहले यह भगवान् की चिंगारी मात्र होता है और बाद में घने अंधकार के बीच चल रही नन्ही-सी ज्वाला । सदैव भागवत संस्पर्श में रहने के कारण यह दिव्य संभावनाओं से भरा रहता है ।
चैत्य में शांत, पूर्ण निश्चल, गहन गहराई के अंदर भागवत ऊष्मा से परिपूर्ण शांत सारतत्व से समृद्ध शुद्ध मधुरता है ।
एक आध्यात्मिक उपस्थिति ! अंतःप्रकाश ! दिव्य अग्नि ! एक संगठित, अपने बारे में पूर्ण सचेतन, स्वतंत्र और निश्चय पूर्वक अपना अधिकार जमाने वाली शक्ति से युक्त सर्वशक्तिमान सत्ता । इसकी प्राप्ति लंबे प्रयासों का फल होती है वह जिसमें कभी-कभी अनेक जन्म भी लग जाते हैं, किंतु मनुष्य चैत्य साधना से इसे प्राप्त कर सकता है ।
उदाहरण के लिए चैत्य सेनानायक है । मन और प्राण उसकी सेना है । जिस प्रकार सेना अपने सेनानायक की आज्ञा का पालन करती है । इसी प्रकार मन और प्राण अपने सेनानायक के चारों ओर सुगठित होकर आज्ञाएँ प्राप्त करते हैं और यथासंभव उत्तम रूप से उसका पालन करते हैं । वे अंतर्निहित चैत्य प्रभाव के अधीन रहकर उसके गुण स्वभाव और प्रकृति को ग्रहण करते रहते हैं ।
चैत्य अंश दिव्य संभावनाओं से भरा होने के कारण मानव मन, प्राण और शरीर की निम्न त्रिविद्ध अभिव्यक्ति को सहारा देता है । यह दिव्य तत्व समस्त प्राणियों में होता है; किंतु वह सामान्य चेतना के पीछे छिपा रहता है, आरंभ में विकसित नहीं होता, और जब विकसित हो जाता है तब भी, सदैव या प्राय: सामने नहीं रहता । अपने करणों के सहारे उनकी सीमाओं के अधीन, जहां तक उन करणों की अपूर्णताएं उसे प्रकट होने देती है वहां तक वह अभिव्यक्त होता है ।
भगवान् की ओर उन्मुख होने की अनुभूति के द्वारा वह अपनी चेतना में वर्धित होता है और जब-जब हमारे अंदर उच्चतर क्रिया होती है उसे बल मिलता है । और अंत में इन गभीरतर उच्चतम क्रियाओं का संचय और शक्तियों का अवतरण होने से यह सत्यं, शिवं, सुंदरम की ओर बढ़ता है। चैत्य व्यक्तित्व का विकास होता है। यही चैत्य पुरुष है। चैत्य पुरुष ही मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन की ओर मुड़ने का सच्चा कारण होता है! यद्यपि बहुदा गुप्त कारण होता है और जीवन में उसका बड़ा सहायक होता है ।
इसीलिये जीवन में साधना के लिये उसे जागृत करना अर्थात् पीछे से आगे की ओर लाना आवश्यक और अनिवार्य है। यह हृदय के अंदर नहीं वरन् हृदय के पीछे अवस्थित है। यह हमारा सच्चा अंतरात्मा चैत्य -पुरुष है । चैत्य में अतुलनीय शक्ति होती है । यह चैत्य शक्ति मन, प्राण और शरीर पर क्रिया कर सकती है। चैत्य हमारी प्रकृति को भगवान की ओर मोड़ने के लिए हमें पर्याप्त तैयार करता और शक्तिशाली हो जाता है ।
इसके बाद वह मानसिक, प्राणिक और भौतिक पर्दे को चीरकर और पूरी तरह से सामने आकर सहज ही मानव वृत्तियों को शासित और प्रकृति को रूपांतरित कर सकता है । उसके बाद प्रकृति अपने-आप को अंतरात्मा पर नहीं थोपती अपितु तो अंतरात्मा ‘पुरुष’ प्रकृति पर अपने आदेशों को लागू करता है।
इस तरह हमारे विचार, अनुभव, संवेदन, कर्म – और हमारे अंदर की प्रत्येक चीज को शुद्ध कर उन्हें दिव्य क्रियाओं को करने के लिए तैयार करती है । इसे हृदयस्थ पुरुष या चैत्त्य पुरुष कहा जाता है । आंतरिक या गुह्य हदय ‘हृदये गुहायाम्’ यही है ।
चैत्य पुरुष वक्षस्थल के मध्य भाग हृदय चक्र में है । ( शारीरिक हृदय में नहीं, क्योंकि सभी चक्र शरीर के मध्य भाग में है ) किंतु चैत्य पुरुष पीछे की ओर बहुत गहन गहराई में है । आंतरिक आयाम में । सौर चक्र के जरा पीछे के क्षेत्र में अवस्थित है । जब कोई प्राण से चैत्य में जाता है, तब ऐसा अनुभव होता है मानो वह नीचे गहरे और गहरे उतरता जा रहा है । जब तक कि वह चैत्य के केंद्रीय स्थान में नहीं पहुंच जाता । ह्रदय चक्र का सतही भाग भावमय पुरुष का स्थान है । वहां से मनुष्य चैत्य को पाने के लिये अपने अंदर की गहराई में उतरता है । इसी गहन गहराई में उतरते जाना उससे मिलन की तैयारी है ।
अंतरात्मा या चैत्य- पुरुष का निज स्वभाव भागवत सत्य की ओर मुड़ना है । जैसे सूर्यमुखी का फूल सूर्य की ओर मुड़ता है वैसे ही मानव के अंदर चैत्य भगवान की ओर खुलता, खिलता और विकसित होकर भागवत शक्तियों से संपन्न बनाता है ।
चैत्य पुरुष स्थिर, निश्चल, उदार, विशाल, सचेतन और प्रगतिशील होता है । चैत्य देखता और समझता है । सच्चाई, संकल्प और अध्यवसाय का मूल स्तोत्र चैत्य पुरुष में है। अमरत्व का बोध, भागवत प्रभाव के प्रति पूर्ण ग्रहणशीलता और पूर्ण आत्मसमर्पण से ओत – प्रोत होता है ।
चैत्य सत्ता और परम सत्ता के बीच गहरा संबंध होता है । चैत्य सत्ता आंतरिक परम् सत्य द्वारा निर्मित होती है । और इसके चारों और संगठित रहती है। परम् सत्य शाश्वत सत् है । यह चैत्य को गति और शक्ति देता है । चैत्य सत्ता बढ़ती है, विकसित होकर रूप लेती है, प्रगति करती है और अधिकाधिक प्रकाशमान व्यष्टि रूप लेती जाती है। इस तरह वह परम् सत्य को अभिव्यक्त करने में अधिकाधिक अधिक समर्थ हो जाती है । चैत्य पुरुष प्रत्येक बार जबकि भागवत सत्ता के गहन संपर्क में उतर आता है तब वह अपने लिये एक नवीन मन, प्राण और शरीर की रचना करता है ।
व्यक्ति जिस क्षण अपने अंदर चैत्य और भगवान के ‘परम सत्य’ के लिये पूरी तरह सचेतन हो जाता है बस उसी क्षण भगवान को पाने की उसकी व्याकुलता भरी अभीप्सायुक्त पुकार और संकल्प क्रियाशील हो उठते हैं । उसे जीवन के सच्चे लक्ष्य और उद्देश्य का भान होने लगता है और उसका अंत: स्थित पथ – प्रदर्शक प्रकट होने लगता है ।
चैत्य पुरुष को प्राप्त कर मानव दिव्य प्रेम को अपने अंदर अनुभव करता है । उसकी सत्ता के अंगों के अंदर चैत्य जीवन की अभिव्यक्ति – शांति, हर्षमय प्रशांति और आनंद के रूप में होती है । जो उसे परम् आनंद तक ले जाने में समर्थ होती है । चैत्य अमर है । चैत्य द्वारा धरती पर अमरता को प्रकट किया जाता है । चैत्य मानव अपूर्णता, अहंकार, अज्ञान, अंधकार को परिवर्तित होने या लुप्त होने के लिये बाधित करने का प्रभु का दिव्य साधन है। चैत्य पुरुष साधना करने की प्रथम सीढ़ी है ।
जीवन और अंत:प्रेरणा से संचालित हो इसके लिये आंतरिक परिवर्तन, चैत्य रूपांतरण, चैत्य जागरण, चैत्य प्राप्ति अत्यन्त आवश्यक है ।
मानव चैत्य व्यक्तित्व रूप ग्रहण कर; सूर्यलोकित पथ पर आगे चलकर आत्म साक्षात्कार, प्रभु प्राप्ति और वही बन जाने जैसी महत्तर उपलब्धि को प्राप्त करें। अपने जन्म, जीवन, मृत्यु, मृत्यु उपरान्त का जीवन और पुनर्जन्म और साधना के लिये चैत्य पुरुष के चुनाव की दिव्य महिमा से परिचित हो सके। यही चैत्य ध्यान साधना मंत्र माला बनाने का आशय है ।
हमारे अंदर विकसित आत्मा, जीवात्मा और चैत्य पुरुष के बारे में गभीर और विस्तृत अध्ययन तथा चैत्य साधना हेतु हम श्रीमां – श्रीअरविन्द के मूल ग्रंथों का पठन करें यह श्रेयस्कर होगा ।