When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"
प्राण की शिक्षा
सब प्रकार की शिक्षाओं में संभवतः प्राण की शिक्षा सबसे अधिक आवश्यक है।
प्राण की शिक्षा के दो प्रधान रूप हैं। वे दोनों ही लक्ष्य और पद्धति की दृष्टि से एक-दूसरे से बहुत भिन्न हैं, पर हैं दोनों ही एक समान महत्त्वपूर्ण। पहला इंद्रियों के विकास और उनके उपयोग से संबंध रखता है और दूसरा है अपने चरित्र के विषय में सचेतन होना और धीरे-धीरे उस पर प्रभुत्व स्थापित कर अंत में उसका रूपांतर साधितकरना।
फिर इंद्रियों के शिक्षा के भी कई रूप हैं, जैसे-जैसे सत्ता वर्धित होती है वैसे-वैसे वे रूप एक-दूसरे के साथ जुड़ते चले जाते हैं; निश्चय ही, यह शिक्षा बंद कभी नहीं होनी चाहिये। इंद्रियों को इस प्रकार सुशिक्षित किया जा सकता है कि वे अपनी क्रिया में, साधारणतया उनसे जैसी आशा की जाती है उससे बहुत अधिक निर्दोषता और शक्ति प्राप्त कर सकें।