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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"श्री अरविंद के पूर्ण योग में शांति समस्त सिद्धि का आधार है। मानव गहन एकाग्रता तथा और अचंचलता का अभ्यास कर इसका अनुभव प्राप्त कर सकता है। महायोगी श्रीअरविंद के अनुसार शांति स्थिर सामंजस्य भरे विश्राम का चिन्ह है।
शांति ऐसी स्थिरता है जो मानव को किसी बहुत ही सकारात्मक गहराई में ले जाकर लहरहीन आनंद तक पहुंचा देती है। शांति में गहरी अचंचलता है, जहां कोई क्षोभ नहीं । शांति मानव को सुरक्षा, मुक्ति तथा पूर्ण संतोष प्रदान करती है।
जिस प्रकार आत्मा हमेशा, क्रियाशीलता के बीच में भी विश्राम में रहती है। शांति यही आध्यात्मिक विश्राम देती है। अशांत तथा तामसिक व्यक्ति सदैव अधः पतन निष्क्रियता में चला जाता है। यदि मानव अपनी निम्नतर प्रकृति के भय तथा तनाव से मुक्त होने के लिये शांति की खोज और उसे पाने का प्रयत्न करे, वह शांति को पुकार कर निश्चित ही अपने अंदर दिव्य रूपांतरण का अनुभव कर उच्चतर प्रकृति की दिव्य शांति में विश्राम पा सकता है।
श्रीमां ने कहा है यदि तुम्हारे हृदय में शांति नहीं है तो तुम कहीं भी शांति प्राप्त नहीं कर सकते हो। प्रत्येक मानव को अपने भीतर गहराई में उतरकर शांति को पकड़ना होगा। संकल्प शक्ति से शरीर के कोषाणओं की ओर धकेलना होगा। शांति का चिंतन मनुष्य के स्वास्थ्य को लौटा लायेगा और मनुष्य रोग मुक्त हो जायेगा।
मां कहती है, दृढ़ शांति और नीरवता प्राप्त करने का प्रायोगिक व सच्चा उपाय है सर्वप्रथम हम शांत चित्त होकर बैठ जाएं और भगवान से हम शांति की चाह करें। अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहें। पचास बातें सोचने के स्थान पर स्वयं से कहना शुरू करो- शांति.. शांति.. शांति.. शांति..। तुम शांति और प्रशांति की कल्पना करो। अभीप्सा करो, प्रभु के सामने अपनी इच्छा प्रकट करो और कहो करते रहो– शांति.. शांति.. प्रशांति..। किंतु प्रयास के बाद फिर भी कोई नकारात्मक चीजें तुम्हारे अंदर आये, स्पर्श करे और क्रिया करे तो शांति पूर्वक कहो – शांति.. शांति..शांति.. । निरर्थक विचारों पर ध्यान मत दो । विचारों से ऐसा व्यवहार करो, जैसे इनका कोई अस्तित्व नहीं है। यह सब निरर्थक है । अपने मन को शांति पर एकाग्र कर फिर दोहराना चाहिये शांति..शांति.. शांति..।
प्रातः उठने पर , रात्रि सोने से पूर्व , यहां तक कि यदि तुम अपनी पाचन शक्ति को बढ़ाना चाहते हो तो, भोजन से पूर्व शांत – चित्त होकर बैठो और कहो – शांति..शांति.. शांति..। और सब कुछ शांत हो जायेगा। तुम्हें ऐसा अनुभव होगा, मानो सारे कोलाहल से दूर, बहुत दूर हम परमात्मा की बाहों में हैं। अर्थात् प्रत्येक कर्म करने के पूर्व मनुष्य को शांति को पुकारना चाहिये।
श्रीमाँ कहती है – शांति को सदैव ऐसे पुकारो जैसे तुम अपने परम् प्रिय मित्र को पुकारते हो और पुकारने मात्र से ही वह आ जाता है। हाँ तो आओ, शांति और प्रशांति को अपना मित्र बना लो और उन्हें अंदर से पुकारो – आओ, शांति..शांति..शांति..शांति.. आओ। शिष्यों को मार्गदर्शन देते हुए श्रीमाँ कहती है – शांति-अवतरण का सामान्य नियम है मानव को अपने अंदर शान्ति का अवतरण सर्वप्रथम सिर , फिर गर्दन और वक्षस्थल में होता है। क्रम क्रमशः यह हृदय और नाभि में उतरना चाहिये तभी इसमें एक गहरी स्थिरता आती है।
साधारणत: ठोस ठंडक का अनुभव शांति के स्पर्श या अवतरण का द्योतक होता है। वह मानव को निश्चल बनाकर इस बात का विश्वास दिलाता है कि यह निश्चय ही वह चीज है जिसे श्री अरविंद के पूर्ण योग में उच्चतर चेतना का अवतरण कहते हैं।
चैत्य शांति प्राप्त करने हेतु निर्देश देते हुए श्रीमाँ कहती है – ” योग साधना में तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिये । भगवान को प्राप्त करना और तुम उनके बिना नहीं रह सकते। तो आओ, इस अभीप्सा के साथ तुम सर्वप्रथम भगवान पर एकाग्र हो जाओ और अपने केंद्र पर एकाग्र होकर दृढ़तापूर्वक संकल्प कर अपने ही हृदय में प्रवेश करो। उसके अंदर और अंदर की गहराई में प्रवेश करो। अपनी चेतना के बाहर बिखरे हुए तारों को एकत्र कर उन्हें समेट कर अंदर डुबकी लगाओ और तह में जाकर बैठ जाओ। वहाँ है ह्रदय की गंभीर शांति। एक गहन शांति। असीम शांति।”