Daily Quotes

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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

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भारत महाशक्ति

भारत

हे हमारी मां, हे भारत की आत्म-शक्ति, हे जननी, तूने कभीअत्यन्त अंधकार पूर्ण अवसाद के दिनों में भी यहां तक कि जब तेरे बच्चों ने तेरी वाणी अनसुनी कर दी, अन्य प्रभुओं की सेवा की और तुझे अस्वीकार कर दिया, तब भी तूने उनका साथ नहीं छोड़ा हे मां, आज, इस महान् घड़ी में जब वे जग पड़े हैं और तेरी स्वतंत्रता के इस उष:काल में तेरे मुख मंडल पर ज्योति पड़ रही है , हम तुझे नमस्कार कर रहे हैं । हमें पथ दिखा जिसमें स्वतंत्रता का जो विशाल क्षितिज हमारे सामने उन्मुक्त हुआ है वह तेरी सच्ची महानता का तथा विश्व के राष्ट्र समाज के अन्दर तेरे सच्चे जीवन का भी क्षितिज बने । हमें पथ दिखा जिसमें हम सर्वदा महान् आदर्शों के पक्ष में ही खड़े हो और अध्यात्म मार्ग के नेता के रूप में तथा सभी जातियों के मित्र और सहायक के रूप में तेरा सच्चा स्वरूप मनुष्य जाति को दिखा सकें ।

आह्वान 15 अगस्त, 1947

संसार के कल्याण के लिए भारत की रक्षा होनी ही चाहिये क्योंकि केवल वही विश्व-शांति और नयी विश्व-व्यवस्था की ओर ले जा सकता है ।

फरवरी, 1954

भारत का भविष्य बहुत स्पष्ट है। भारत संसार का गुरु है । भारत जीवित – जागृत आत्मा है। भारत संसार में आध्यात्मिक ज्ञान को जन्म दे रहा है । भारत सरकार को चाहिये कि इस क्षेत्र में भारत के महत्व को स्वीकार करे और अपने कार्यों की योजना उसी के अनुसार बनाये ।    

फरवरी, 1954

आर्य

एक भागवत संकल्प, चेतना, प्रेम और परमानंद के रूप में आर्य प्रभु का सेवक प्रेमी और अन्वेषक है।

आर्य क्या है ?

एक भागवत संकल्प, चेतना, प्रेम और परमानंद के रूप में आर्य प्रभु का सेवक प्रेमी और अन्वेषक है।जिसमें सत्य और दिव्य गुण है। अनार्य असत्य है। 

आर्य एक प्रयास है, एक विद्रोह है एवं विजय है ! आर्य अपने प्रयास से मानवीय विकास में आने वाली अन्त: – बाह्य बाधाओं को जीत लेता है ।   आर्य प्रकृति का पहला गुण है – आत्म विजय।आर्य एक आत्मा है – भगवान् का चुना हुआ प्रतिनिधि । ‘दिव्य जीवन जीने वाली पवित्र आत्मा’ । 

स्वयं भगवान् द्वारा धरती पर भागवत मुहूर्त में जन्म लेने वाला सर्व विजयी आत्मा! धरती पर मानव जाति का प्रतिनिधि, पुरोधा। एक भव्य-दिव्य संस्कृति के उत्थान और दिव्य समाज के दिशा – दर्शन हेतु जिसे भगवान् ने उतारा है। वह पार्थिवता एवं शरीर पर विजय प्राप्त कर लेता है । तथा साधारण मनुष्य की तरह निरुत्साह, अकर्मण्यता, निर्जीव दिनचर्या में तामसिक सीमाओं में रहना स्वीकार नहीं करता। वह जीवन और उसकी ऊर्जाओं को जीतकर प्रभु का समर्पित यंत्र बन जाता है । इस प्रकार जीवन की क्षुधाओं और लालसाओं द्वारा शासित होना या उनकी राजसिक  कुप्रवृत्तियों का दास होना अस्वीकार कर देता है । वह मन और उसकी आदतों के प्रति सजग रहते हुए विचारों की सुखद सम्मतियों के आवरण में नहीं जीता । किंतु अपने आंतरिक सत्य के अन्वेषण और चयन में पूर्ण सचेतन होता है । संकल्प में सुदृढ़ और समर्थ होने के साथ बुद्धि में विशाल और लचीला कैसे हुआ जाये, इसे वह अच्छी तरह जानता है। हर वस्तु की खोज में, हर वस्तु में औचित्य, ऊंचाई, स्वतंत्रता का अन्वेषण करते हुए परिपूर्णता उसका दिव्य लक्ष्य होता है ।    

श्रीअरविन्द का आर्य स्वप्न है -

मनुष्य मात्र ‘आर्य’ बने l परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व सभी आर्य बनें । 

भारत आर्य देश है । उसकी आर्य भूमि पर आर्य आत्म पुरुष और आर्य नारी शक्तियों ने अवतरित होकर राष्ट्र चेतना को प्रबुद्ध, सशक्त, समृद्ध बनाने के लिये आर्य आध्यात्मिक संस्कृति की प्रेरणा दी। 

श्रीअरविन्द का विकासवादी सिद्धांत है -

जड़ से जीवन, जीवन से मस्तिष्क, मस्तिष्क के ऊपर अतिमन का देश, पूर्ण प्रकाशमय मन का देश है।

श्रीअरविंद स्पष्ट रूप से कहते हैं –

मानवता के पुराने वस्त्र चीथड़े-चीथड़े हो गए हैं । उसे कोई नया परिधान दिया जाये ।      

यह नया परिधान अतिमानव क्षेत्र से आयेगा । अतिमानस के अवतरण से,  यही अतिमानव आत्म विकास द्वारा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को दासताओं से मुक्त कर उन्मुक्त विकास में सहायक होगा ।   

भारत की नियति का सूर्य उदय होगा । भारत अपने दिव्य प्रकाश से समूचे विश्व को प्रकाशित करेगा । 

संयोजन : सुमन कोचर

श्रीअरविन्द दुर्गा – स्तोत्र

1

मात: दुर्गे ! सिंहवाहिनि सर्वशक्ति –

दायिनी मात: शिवप्रिये ! तेरी शक्ति के

अंश से उद्भूत हम भारत के युवकगण

तेरे मंदिर में बैठे हुए तुझ से प्रार्थना

करते हैं – सुन हे मात:, तू भारत में

आविर्भूत हो, प्रकाशमान हो l 

2

मात: दुर्गे ! युग-युग में मानव- 

शरीर धारण कर, जन्म-जन्म में तेरा ही 

काम कर, हम तेरे आनंदधाम को लौट 

जाते हैं l इस बार भी जन्म लेकर हम 

तेरे ही कार्य के व्रती हैं – सुन हे मात:, 

तू भारत में आविर्भूत हो, हमारी 

सहायक हो l 

3

मात: दुर्गे ! सिंहवाहिनी, त्रिशूल- 

धारिणी, वर्म-आवृत-सुंदर-शरीर-धारिणी

जयदायिनी मात: ! तेरी प्रतीक्षा में भारत 

तेरी उसी मंगलमयी मूर्ति को देखने के 

लिये उत्सुक हैं – सुन हे मात:, तू भारत 

में आविर्भूत हो, प्रकाशमान हो l 

4

मात: दुर्गे ! बलदायिनी, प्रेमदायिनी,

ज्ञानदायिनी, शक्ति-स्वरूपिणि भीमे,

सौम्य-रौद्ररुपिणि ! जीवन-संग्राम और 

 

भारत-संग्राम में तेरे ही प्रेरित हम सब 

योद्धा हैं – दे मात:, प्राण और मन में 

असुर की शक्ति दे, असुर का उद्यम

दे; दे मात: , ह्रदय और बुद्धि में देवता 

का चरित्र दे , देवता का ज्ञान दे l

5

मात: दुर्गे ! जगत्-श्रेष्ठ भारतजाति

घोर तिमिर से आच्छन्न थी l तू, हे 

मात:, गगनप्रांत में धीरे-धीरे उदय हो 

रही है, तेरे स्वर्गीय शरीर की तिमिर- 

विनाशी आभा से उषा का प्रकाश हुआ है l

 आलोक विस्तार कर, हे मात:,

             तिमिर विनाश कर l 

6

6

मात: दुर्गे ! श्यामला, सर्वसौंदर्य- 

अलंकृता, ज्ञान-प्रेम-शक्ति की आधार 

भारतभूमि, तेरी विभूति, इतने दिनों तक 

शक्तिसंभरण के लिये अपने-आपको 

छिपा रही थी l आगत युग में, आगत

काल में, जगत् का भार कंधे पर 

लादकर भारतजननी उठ रही है – 

आ, हे मात: प्रकट हो l

7

मात: दुर्गे ! हम तेरी संतान, तेरे 

प्रसाद से, तेरे प्रभाव से, महत् कार्य 

के, महत् भाव के, उपयुक्त हो जायें l 

हे मात: विनाश कर क्षुद्रता, विनाश कर 

स्वार्थ, विनाश कर भय l  

8

मात: दुर्गे ! कालीरुपिणि, नृमुंड-

मालिनि, दिगम्बरि, कृपाणपाणि देवि !

असुरविनाशिनि ! अपने क्रूर निनाद से 

अंत:स्थ रिपुओं का विनाश कर l इनमें 

से एक भी हमारे अंदर जीवित न रहे, 

जिससे कि हम विमल निर्मल हो जायें l 

यही प्रार्थना है, हे मात:, प्रकट हो l 

9

मात: दुर्गे ! स्वार्थ से, भय से, 

क्षुद्राशयता से भारत म्रियमाण हो रहा 

है l हे मात ! हमें महत् कर, महत् – 

प्रयासी कर, उदारचेता कर, सत्यसंकल्पी 

कर l ऐसा कर जिससे कि हम अब 

और अल्पाभिप्सु, निश्चेष्ट, अलस तथा 

भयभीत न हों l

10

मात: दुर्गे ! योगशक्ति का विस्तार 

कर l तेरी प्रिय आर्यसंतान हम, हममें, 

लुप्त शिक्षा, चरित्र, मेधाशक्ति, श्रद्धा- 

भक्ति, तपस्या, ब्रह्मचर्य, सत्यज्ञान का 

विकास कर, जगत् में वितरण कर l हे 

दुर्गतिनाशिनी जगदम्बे ! मनुष्य की 

सहायता के लिये प्रकट हो l 

11

मात: दुर्गे ! योगशक्ति का विस्तार 

कर l तेरी प्रिय आर्यसंतान हम, हममें, 

लुप्त शिक्षा, चरित्र, मेधाशक्ति, श्रद्धा- 

भक्ति, तपस्या, ब्रह्मचर्य, सत्यज्ञान का 

विकास कर, जगत् में वितरण कर l हे 

दुर्गतिनाशिनी जगदम्बे ! मनुष्य की 

सहायता के लिये प्रकट हो l 

12

मात: दुर्गे ! अंत:स्थ रिपुओं का 

संहार करके बाहर के बाधाविघ्नों को 

निर्मूल कर l बलशाली, पराक्रमी, 

उन्न्तचेता जाति, भारत के पवित्र काननों 

में, उर्वर खेतों में, गगनसह्चर, पर्वतों के 

तले, पुतसलिला नदियों के तीर पर 

एकता से, प्रेम से, सत्यशक्ति से, 

शिल्प से, साहित्य से, विक्रम से, ज्ञान 

से, श्रेष्ठ होकर निवास करे l मातृ – चरणों 

में यही प्रार्थना है, हे मात:, प्रकट हो l

13

मात: दुर्गे ! अब की बार तुझे पाने 

पर, अब तेरा विसर्जन नहीं करेंगे l 

श्रद्धा, भक्ति और प्रेम की डोर से तुझे 

बांध लेंगे l आ मात: ! हमारे मन, प्राण 

और शरीर में प्रकट हो l 

14

वीरमार्गप्रदर्शिनि आ ! अब हम तेरा 

विसर्जन नहीं करेंगे l हमारा सारा जीवन 

ही अनवच्छिन्न दुर्गापूजा हो, हमारे 

समस्त कार्य अविरत पवित्र, प्रेममय, 

शक्तिमय, मातृसेवाव्रत से युक्त हों l 

यही प्रार्थना है, हे मात: ! तू भारत में 

आविर्भूत हो, प्रकाशमान हो l 

संयोजन : सुमन कोचर