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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"केवल ‘देवत्व‘ को जाग्रत् करने हेतु
उस परम् ने परम का अंश-बीज बोया है।
अपनी रहस्यमयी लीला की संसिद्धि-हेतु
असंख्यों युगों से, मिट्टी की इस देह में
परम का यह जादू-भरा खेल
इसीलिए है खेला जा रहा है।
कि खेल-खेल में सहसा
मानव अनचले मार्गों को खोज ले।
कि खेल-खेल में
अश्रुत वाणियों को सुन सके।
कि खेल-खेल में
अदृश्य दृश्यों को देख ले।
कि खेल-खेल में
अस्पृश्य तत्त्वों का स्पर्श कर ले।
कि खेल-खेल में
अनछुई गहराइयों को छू ले।
जब तक मानव मन के कठोर पूर्वाग्रही विचारों
की तहें टूट न जातीं या
मानव मन के निम्न प्राण की क्षुद्र इच्छाएँ
भस्मीभूत होने ऊपर फूट न आती
तब तक कैसे हो सकती है यह सत्ता शान्त और नीरव ?
शान्ति तथा नीरवता के पार्श्व में ही तो
छुपा हुआ है दिव्य गन्ध का यह सु‘मन’
इसी सु‘मन‘ के उर्वर जागरण-हेतु ही तो
युगों से मानव की अभंग अभीप्सा का
प्रयत्न धरती पर है चल रहा।
जिसके अरुणिम स्वर्णिम प्रकाश में,
उस परम को वह (मानव) है अभिव्यक्त कर रहा ।
मानव में भगवान् की अभिव्यक्ति कोई खेल नहीं है ।
जो हर क्षण शिशु बन कर परम प्रभु के साथ खेल खेल सकते हैं,
वे ही अपने अन्दर परम प्रभु की अभिव्यक्ति के
खेल में विजयी हो सकते हैं।
संक्रमण के दौर से गुजर रही धरती ,
जीर्ण , पुराने और नये का चल रहा युद्ध ।
पुराना अड़ा हुआ अपनी जिद पर,
नया चुपके से आ धमका पृथ्वी जीवन पर ।
यूं मानो भविष्य सीधा ही बिना दस्तक दिये,
वर्तमान में दबे पाँव घुस आया ।
नई दुनिया जन्म ले चुकी धरती पर,
किन्तु मानव है अभी बहुत ही दुर्बल ।
उसे नये तौर – तरीके मान्य नहीं ,
पुराने भी उसके किसी काम के नहीं ।
किंतु नया अन्दर है,
अन्दर पनपने का कर रहा प्रयास,
उसने स्वयं नई राह खोली और रच दिया इतिहास ।
जिस पर कभी नहीं पड़े थे मानव के पग
लगता है घोर संकट पर पड़ गये विजय के डग
महाविजय तो अभी आना शेष है,
उसके लिए तो एक बड़ा युद्ध लड़ना होगा ।
बड़ा झटका सहने को तैयार होना होगा ।
महाविजय या महाविनाश की क्या औकात ?
जब है परम प्रभु तेरे साथ और जब तू है प्रभु के हाथ ।
यह तो है एक सुनियोजित भागवत योजना का अंग ,
अंतरात्मा को तेरी सत्ता का सच्चा नेतृत्व देने का अपना ढंग ।
घनघोर अंधकार में खोल अपनी अंतः दृष्टि,
भगवान है तेरी नींव, भगवान ही मंजिल और सृष्टि ।
युवा कौन है ?
युवा वह है जो जानता है
वह कौन है , क्यों है , क्या है ?
क्या कमी है , क्या पाना है , उसे क्या होना है ?
युवा वह है – जिसमें भविष्य में जीने की इच्छा शक्ति हो सदैव सब कुछ पीछे छोड़ने – त्यागने की भक्ति हो ।
जो किसी भी चीज़ को असाध्य न मानता हो जो अध्यवसायी और आत्म बलिदानी हो
युवा वह है – जो प्रतिक्षण सचेतन और जागरूक हो जो स्वभाव से शांत , स्थिर और मन से नीरव हो
जिसमें एकाग्रता , सच्चाई और आंतरिक गहराई हो जो न हो कामनाओं , वासनाओं , इच्छाओं का गुलाम
जो व्यक्तिगत स्वार्थ से हो मुक्त और उत्तेजना को मानता है हराम ।युवा वह है – जो अपरिवर्तनीय संकल्प का स्वामी हो
जो निष्कपट , उदार और ईमानदार हो जिसके जीवन का लक्ष्य दिव्य और भगवान हो
जिसके अन्दर प्रगति की अतोषणीय प्यास हो युवा वह है – प्रगति के रहस्यमय यौवन को जानता हो
जिसे प्रगति की असीम संभावना और भागवत शक्ति का ज्ञान हो ।युवा वह है – जो खोजी , उत्साही और प्रतिभावान हो
जो सहनशील , मेहनती , उच्चाकांक्षी और जिसमें देश का स्वाभिमान हो ।
जो निर्भीक , कठोर परिश्रमी ,साहसी , बलशाली और चरित्रवान हो ,
जिसे एकता का भान हो, छू न गया कोई अभिमान हो ।युवा वह है – जो सत्यनिष्ठ , आज्ञाकारी और धैर्यवान हो ,
जो विनयशील और प्रज्ञावान हो ।जो सत्य संकल्पी और अंतर प्रगति का अभीप्सु हो
नित नयी प्रगति को उत्सुक और अभ्यासी हो जो स्वयं की प्रकृति के रूपांतर के लिए जिज्ञासु हो
जो भगवत्ता के प्रति अन्दर से खुला और विश्वासी हो सत्य शक्ति का पूर्ण यंत्र बनने का अभिलाषी हो ।
युवा वह है – जो श्रद्धा, विश्ववास, त्याग और समर्पण की मिसाल हो
जिसे अंतः शक्ति की पहचान हो जो आत्मा का करता सदैव सम्मान हो जो दिव्य गुणों की खान हो
जिसे जीवन की पूर्णता को पाने का भान हो और पूर्णत्व का ध्यान हो ।
जो सदैव उत्सर्गवान और भगवान के प्रति निष्ठावान हो ।
युवा वह है – जिसका लक्ष्य अपने और जगत का नव – निर्माण हो ।
सार रूप में युवा वह है जो सत्यवान हो, जिसे हर विद्या का अक्षय ज्ञान हो
दिव्य प्रेम, भक्ति , एकता और आनंद की संतान हो ।
समस्या क्या है ?
समस्या है जल्दबाजी में रहना , प्रगति से थक जाना ।
आराम की चाहना , आलस्य को पोसना ।
रूपांतर से डरना, दिव्यत्व से ऊबना ।
क्रोध में बह जाना , उत्तेजनाओं में खो जाना ।
नशे में धुत हो , अपने को भूल जाना ।
अज्ञान और ‘अहं’ में ‘अँधा’ हो
‘स्व’ ‘स्व’ और ‘स्व’ को ही देखना ।
निदान है –
आंतरिक विकास के प्रति सचेतन होना ।
निम्न कामनाओं पर विजय द्वारा अपने ‘स्व’ को जानना ।
अपने ‘अहं’ को स्वयं पराजित करना ।
अपने ‘अहं’ की पराजय का स्वयं आनंद लेना ।
सत्ता के अंगों और चेतना के विकास को दिव्य लक्ष्य मानना ।
निदान है – आत्म संयम से व्यक्तित्व को बुनना,
दिव्य जीवन हेतु भगवान को चुनना ।
अपने आपको भगवान की ओर खोलना,
अपना सब कुछ भगवान को दे देना ।