Daily Quotes

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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

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नाटक

सावित्री सन्देश

एक प्रार्थना, एक महान् कर्म, एक राजोचित विचार

मनुष्य की शक्ति को लोकोत्तर ‘शक्ति’ से संयुक्त कर सकता है ।

तब चमत्कार जीवन का सामान्य नियम बन जाता है, 

एक महान् कार्य वस्तुओं के क्रम को परिवर्तित कर सकता है ;

तब अकेला विचार सर्व शक्तिशाली बन जाता है ।

सावित्री
( पृष्ठ – 20; पर्व 1 : आदि पर्व; सर्ग 2 – समस्या )

सावित्री के विषय में श्री माँ

यदि तुम सावित्री को न भी समझ पा रहे हो तो भी उसे अवश्य पढ़ो । तुम्हें अनुभव होगा कि प्रत्येक बार जब तुम उसे पढ़ते हो तो एक नई अनुभूति, एक नया बोध तुम्हारे अंदर उद्घघाटित हो जाता है, प्रत्येक बार तुम्हें उसमें एक नई ज्योति की झलक मिलेगी । वे बातें जो पहले तुम नहीं समझ पा रहे थे, सहसा तुम्हारे समक्ष स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हो उठेंगी । ‘सावित्री’ के अध्ययन से, उसके शब्दों एवं पंक्तियों में से एक अनपेक्षित अंतरदर्शन  ऊभर जाता है और तुम्हें प्रतीत होता कि कुछ नया उसमें जुड़ गया है । मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि प्रत्येक छन्द और प्रत्येक वृत्त जो तुम पहले पढ़ चुके होअब एक नए प्रकाश में तुम्हारे अंदर व्यक्त हो उठा है । यही बार-बार घटित होता है । हर बार तुम्हारी अनुभूति एवं तुम्हारी समझ अधिक संवर्धित एवं सम्पन्न हो जाती है और यही प्रत्येक कदम पर इसके अध्ययन का प्रतिफल है, उद्घाटन है ।  

लेकिन तुम्हें ‘सावित्री’ को किसी अन्य पुस्तक के समाचार पत्र की तरह नहीं पढ़ना चाहिये । अपने मस्तिष्क को अन्य सभी प्रभावों से रहित करके इसे पढ़ना चाहिये । कोई भी दूसरा विचार, मानसिक ऊहापोह या उद्वेलन वहां नहीं रहना चाहिये और फिर पहले स्वयं को एकाग्र एवं शांत रखकर अंतर मन को खोल देना चाहियेतब तुम्हारे उस कोरे पन्ने पर ‘सावित्री’ के शब्द, छन्द एवं उनके प्रकंपन अनुप्राणित होने लगेंगे, अंकित होने लगेंगे, अपनी मुहर तुम्हारे मस्तिष्क पर लगा देंगे और तुम्हारे प्रयास के बिना ही स्वयं की व्याख्या एवं अर्थ उद्घाटित करने लगेंगे ।  

‘सावित्री’ अकेले ही तुम्हें उच्चतम स्तरों तक पहुंचने में समर्थ है । यदि कोई सही एवं सच्चे मनोभाव और ढंग से सावित्री पर ध्यान एकाग्र करना जान लेता है तो उसे वह समग्र सहायता प्राप्त होती रहेगी, जिसकी उसे जरूरत है । उस व्यक्ति के लिये जो इस योग- मार्ग का अनुसरण करना चाहता है, यह एक ठोस सहायता है, जैसे मानो स्वयं भगवान् उसे अपने हाथों में ले जा रहे हों; और तब उसके मन में उठा प्रत्येक प्रश्न, चाहे वह कितना भी व्यक्तिगत क्यों न हो, का उत्तर उसे ‘सावित्री’ के पाठ में निहित मिलेगा, उसकी प्रत्येक कठिनाई का समाधान उसमें प्राप्त होगा । वास्तव में इस महान कृति में वह समस्त मूल सारतत्व विस्तार से निहित है, जो योग प्रक्रिया के लिये आवश्यक है । 

श्री अरविंद ने अपनी इस एक ही पुस्तक में संपूर्ण जगत ठसाठस (Crammed) भर दिया है । यह एक अद्भुत कार्य है, अति गरिमापूर्ण, अतुलनीय, अनुपम, अद्वितीय रचना है। तुम जानते हो, सावित्री लिखने से पूर्व श्री अरविंद ने मुझे क्या कहा था ? 

I am impelled to launch on a new adventure. I was hesitating in the beginning, but now I am decided. Still I do not know how far I shall succeed. I pray for help.”  

और तुम जानते हो क्या उनकी क्या स्वीकृति थी ? यह भी प्रारंभ करने से पूर्व, में तुम्हें पहले  ही सावधान कर देना चाहती हूं, यह उनके बोलने का एक ढंग था, जो सदा ही शालीनता एवं दिव्य नम्रता से परिपूर्ण रहता था । उन्होंने कभी स्वयं को आग्रह एवं बलपूर्वक पेश नहीं करना चाहा और जिस दिन वस्तुत: उन्होंने इस महाकाव्य को लिखना शुरू किया, उन्होंने मुझसे कहा :-    

“I have launched myself in a rudderless boat upon the vastness of infinite.”   

और जब एक बार उन्होंने इसकी रचना प्रारंभ कर दी तो बिना रुकावट के पृष्ठ के बाद पृष्ठ लिखते चले गये, मानो वह ऐसी कोई वस्तु जो हो जो पहले से ही वहां पूरी तरह तैयार हो और जिसे उन्होंने स्याही (Ink) से यहां नीचे प्रतिलिखित कर दिया हो । 

सच्चाई तो यह है कि ‘सावित्री’ का पूर्ण आकार-प्रकार उसकी रूपाकृति ऊपर के उच्चतम स्वरों से यहां नीचे अवतीर्ण हुई है और श्रीअरविन्द ने अपनी महान् प्रतिभा से उसे पंक्तिबद्ध एवं व्यवस्थित कर दिया, एक बहुत ही श्रेष्ठ गरिमा पूर्ण  शैली से यहां सजा दिया । कभी-कभी पूरी की पूरी पंक्तियां उनके अंदर उजागर होती थी और उन्हें अविकल, ज्यों की त्यों पन्नों पर लिख दिया करते थे । उन्होंने अथक श्रम किया, अनवरत किया, जिससे की प्रेरणा उच्चतम स्तरों से नीचे आ सके और सचमुच या यह अपने में एक अनुपम सृजन है, अद्वितीय कृति है । इसे एक मुश्त (singe) एवं स्पष्ट रूप में मानव पन्नों पर रख दिया गया है ।  इसके पद समन्वयात्मक, सही एवं सत्य हैं ।  

मैंने कितनी ही पुस्तक पढ़ी हैं, लेकिन अभी तक मैं किसी एक मेव ऐसी कृति के परिचय में नहीं आयी जो सावित्री की समानता कर सके । मैंने ग्रीक एवं लैटिन में लिखी महान् पुस्तकों को पढ़ा है, इंग्लिश एवं फ्रेंच साहित्य का भी अध्ययन किया है,  पूर्व एवं पश्चिम के श्रेष्ठ महाकाव्य को भी पढ़ा है, लेकिन मैं फिर कहती हूं कि ऐसी कोई कृति नहीं, जिसकी ‘सावित्री’ से तुलना की जा सके ।  यह सभी महाकाव्य मुझे उसके समक्ष ऊष्मा एवं गरिमा-रहित, सपाट एवं सच्चे अन्तर्दर्शन से रिक्त होते हैं । निश्चय ही इनमें कुछ अपवाद स्वरूप हैं, लेकिन वे भी अपने किन्हीं लघु अंशों में ही हैं ।   सावित्री में कितनी उच्चता, भव्यता, विस्तार एवं वास्तविकता है ! वस्तुत: यह श्रीअरविन्द  रचित एक अमर एवं शाश्वत रचना है ।। सच कहूं तो इसके समान सम्पूर्ण विश्व में कोई दूसरी कृति नहीं ।। यदि व्यक्ति इसके अन्तर्दर्शन (Vision) को भी एक और रख दें अर्थात् इसमें जो वास्तविक एवं अनिवार्य सारतत्व है , जो समस्त प्रेरणा का हदय है, और वह केवल सावित्री की पक्तियों पर ही अपना विचार एकाग्र करे तो वे उसे अद्वितीय प्रतीत होगी, वे उसे उत्कृष्ट, चिर सम्मत एवं सर्व प्रतिष्ठित स्तर की पंक्तियाँ लगेंगी श्रीअरविन्द ने जो कृति सृजी है, मनुष्य उसकी कल्पना नहीं कर सकता । इसमें काव्य की प्रत्येक विद्या, संपूर्ण दर्शन की प्रणाली एवं तत्व और विविधता विद्यमान है ।

  और तब हम कह सकते हैं कि सावित्री एक दिव्य उद्घाटन है, एक ध्यान है , या अनंत की खोज है, अन्वेषण है । यदि इसे अमरत्व की अभीप्सा एवं अन्त: प्रेरणा से पढ़ा जाए तो केवल इसका पाठ ही अमृत्व की ओर पथ-प्रदर्शक का कर्तव्य पूरा करेगा ।सावित्री’ को पढ़ना वास्तव में योग का अभ्यास करना है, आध्यात्मिक समता एवं एकाग्रता की उपलब्धि करना है । अभीप्सु   को वह सब मिलेगा जो भगवान को साक्षात् करने के लिए आवश्यक है । योग की प्रत्येक विद्या का इसमें विस्तार से उल्लेख  कर दिया गया है । साथ ही, अन्य दूसरी योग प्रक्रियाओं के रहस्यों का भी इसमें समावेश है । निश्चय ही यदि व्यक्ति सच्चाई से इसकी प्रत्येक पंक्ति, जिस सत्य का इसमें उद्घाटन हुआ है, का अनुसरण करता है तो वह अंततः अतिमानसिक योग के रूपांतरण तक पहुंच जाएगा यह सचमुच ही अमोघ एवं अचूक मार्गदर्शन है, जो कभी भी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगा । उसका सहयोग उस व्यक्ति के लिए सदैव उपलब्ध है, जो मार्ग पर अग्रसर होने के लिए दृढ़ संकल्पित है।सावित्री’ का प्रत्येक शब्द व्रत एवं पंक्ति पर संसिद्ध मंत्र की भांति है, जो ज्ञान के द्वारा प्राप्त मनुष्य की सभी उपलब्धियों से सर्वोपरि है और मैं फिर कहती हूं कि शब्द इस ढंग से संजोये गये हैं कि शब्द की लयबद्ध्ता तुम्हें मूल नाद (sound) ॐ की ओर ले जाती है । 

मेरे चिरंजीव ! ‘सावित्री’ में सब कुछ है सब कुछ रहस्यवाद, गुह्यवाद दर्शन, विकास-क्रम का इतिहास, सृष्टि एवं प्रकृति का इतिहास, कैसे सृष्टि की रचना हुई, और क्यों और किस प्रयोजन के लिए,  किस लक्ष्य के लिए हुई इत्यादि । इसमें सब कुछ दिया हुआ है ।  तुम इसमें सभी प्रश्नों के उत्तर पा सकते हो । इसमें इन्हीं तथ्यों का स्पष्टीकरण किया गया है यहां तक कि मनुष्य का भविष्य व आगामी विकास का स्वरूप भी इसमें दर्शाया गया है ।  इस भावी स्वरूप के विषय में अभी तक कोई नहीं जानता है श्रीअरविन्द ने उसे बड़ी गहनता, सुन्दरता एवं स्पष्टता से इसमें वर्णित किया है ताकि वे आध्यात्मिक अन्वेषक, जो विश्व के रहस्य को जानना और हल करना चाहते हैं, उन रहस्यों को और अधिक सरलता एवं स्पष्टता से नि:संदिग्द्ध होकर समझ सके । लेकिन वे रहस्य इस कृति की पंक्तियों के अंदर छुपे हुए हैं  और जो इनको जानना चाहते हैंउनके रहस्यों  को खोजने के लिये सत्य-चेतना  ( truth- consciousness)  को हासिल करना पड़ेगा । समस्त भविष्यवाणियां, अर्थात् वह सब जो आगे होने जा रहा है, एक विशेष एवं अद्भुत ढंग से इसमें समाहित कर दिया गया है । श्रीअरविन्द   ने तुम्हें सत्य उपलब्ध करने की, ‘सत्य – चेतना’ को ढूंढ निकालने की कुंजी थमा दी है, ताकि प्रकाश मर्म में पहुंच सके, अवरोधों को भेद सके और रूपांतर कर सके । उन्होंने वह मार्ग दिखाया है जिस पर चलकर मनुष्य स्वयं को आदिम अज्ञान से मुक्त कर सकता है और सीधे उच्च चेतना के धरातल तक चढ़ सकता है । तुम इस महान् रचना में जीवन की समूची यात्रा का विस्तार से विवरण पाओगे और जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ोगे तुम उन अपरिचित एवं अनजाने तथ्यों को खोज सकोगे, जिनसे अभी तक मानव जीवन अनभिज्ञ है। “यह सावित्रीहै और इससे भी अधिक है ।” 

‘सावित्री’ का अध्ययन करना एक सच्चा एवं अनोखा अनुभव है । वे सभी रहस्यों, जिनका मनुष्य स्वामी था, जिससे वह सम्पन्न था, श्रीअरविन्द ने इसमें प्रत्यक्ष कर दिये और साथ ही अभी जिन रहस्यों से वह अनभिज्ञ है, जिनके लिए वह भविष्य में प्रतिक्षारत है, वे सब  ‘सावित्री’ के विशाल कथानक में और उसकी गहराई में पाये जा सकेंगे । किंतु मनुष्य को इस सब ज्ञान को खोजना है, अन्वेषण करना है, चेतना के विभिन्न स्तरों का अनुभव, अति-मन के विभिन्न स्तरों का अनुभव, यहां तक की मृत्यु को भी विजित करने का अनुभव, सब कुछ एक मात्र रचना में समाविष्ट है । श्रीअरविन्द ने तो इसमें हर अवस्थाओं को क्रमानुसार हर कदम पर चिह्नित कर दिया है, जिससे योग में समग्रता से इस पद पर अग्रसर हुआ जा सकें । 

‘सावित्री’ श्रीअरविन्द की अपनी अनुभूति है और इससे अधिक अद्भुत बात यह भी है कि यह मेरी अपनी भी अनुभूति है ।  यह मेरी साधना है, जिसे उन्होंने कार्यान्वित किया । इसमें वर्णित प्रत्येक विषय, प्रत्येक घटना एवं साक्षात्कार, इसके चित्रण, यहां तक की रंगों का वर्णन भी वही है, जिनका मैंने बोध किया, अन्तर्दर्शन किया । इसके शब्द और मुहावरे भी वहीँ हैं, जैसे मैंने सुने थे और यह सब अनुभव उसके सुनने, पढ़ने के पूर्व ही हो जाते थे । इसके पश्चात् मैंने कई बार ‘सावित्री’ पढ़ी, किंतु जब श्रीअरविन्द  इसे लिख रहे थे,  प्रत्येक सुबह वे इसे मेरे सामने पढ़ा करते थे, तब मुझे यह सब बड़ा विचित्र प्रतीत होता था । शब्दश: मुझे वही अनुभव, जो मैं प्रात: उनसे सुनती थी, रात्रि में हुआ करते थे । वही सारे वर्णन, शब्द, संवाद, रंग, चित्र मैं देखती थी,  सुनती थी,  जो उनकी कविता में चित्रित रहता था और यह कोई अकस्मात् किसी एक दिन की बात नहीं थीअपितु नित्य-प्रति का क्रम था । वास्तव में हम दोनों के संयुक्त अभियान (Adventure)  की एक तस्वीर है, वह अभियान जो अज्ञात लोक अथवा अतिमानस की ओर बढ़ने का और उसमें प्रवेश कर जाने का संयुक्त अभियान था ।      

यह वे अनुभव है, जिन्हें श्रीअरविन्द ने जीया । यह वास्तविकता है, super cosmic सत्य के परम सत्य । उन्होंने इनको वैसे ही अनुभव किया, जैसे कोई भौतिक जीवन में सुख-दु:ख अनुभव करता है । वे अब चेतना के अंधेरों में घूमे, यहां तक मृत्यु के परिवेश में घूमे, यात्रा की, नरक वास की यातना को सहन किया, और कीचड़ से निर्गमन किया, ऊपर उठे, जो सांसारिक क्लेश (world-misery)  हैं, वे सब सहे, सार्वभौमिक परिपूर्णता में विश्वास लेने के हेतु तथा सर्वोच्च आनंद में प्रवेश करने हेतु  । उन्होंने इन सभी क्षेत्रों को पार किया और उनके दुष्परिणामों से गुजरेदेह स्तर पर भी जो कष्ट झेले और सहन किये उनकी कोई कल्पना नहीं कर सकता । आज तक भी किसी ने उनकी तरह यह सब नहीं सहा है । उन्होंने कष्टों को इसलिए झेला ताकि वे उन्हें प्रभु के एक तत्व के आनंद में रूपांतरित कर दें । यह विश्व के इतिहास में एक अद्वितीय एवं अतुलनीय उदाहरण है । ऐसा पहले कभी घटित नहीं हुआ । वही प्रथम यात्री थे, कहें, अज्ञात के पथ को ढूंढ निकालना एवं सुगम बना देने वाले प्रथम पुरुष, ताकि हर समस्त मानव उसके सदस्य हो सकें और उस सर्वोच्च सत्य-लोक (अतिमानस लोक) की ओर कदम बढ़ा सकें । ‘सावित्री’ रूपांतर का पूर्ण योग है, जिसे उन्होंने हमारे लिये सुलभ किया है और यह योग प्रथम बार पृथ्वी चेतना में प्रविष्ट एवं प्रकट हुआ है । और मैं सोचती हूं कि मनुष्य अभी तक तैयार नहीं हुआ है कि वह इसके आगमन का स्वागत कर सके, क्योंकि यह प्राकट्य उसके लिये बहुत ऊंचा और वृहद् है । वह इसको  न तो समझ सकता है, न ग्रहण कर सकता है, क्योंकि मन के द्वारा ‘सावित्री’ को नहीं समझा जा सकता । उसके लिए आध्यात्मिक समाज एवं अनुभव की जरूरत है, तभी वह इस महान् रचना को आत्मसात् करने योग्य बन सकता है । जैसे-जैसे व्यक्ति योग मार्ग पर प्रगति करेगा, वह इसे अधिक उत्तम ढंग से अंगीकार करने योग्य बनता जायेगा । यही नहीं ‘सावित्री’ भविष्य का काव्य है और भविष्य में उद्घाटित  एवं प्रशंसित होगा,  जिसके विषय में श्रीअरविन्द ने अपनी ‘भावी कविता’ नामक पुस्तक में उल्लेख किया है । यह अत्यन्त सूक्ष्म एवं परिष्कृत रचना है, जो मन, बुद्धि के द्वारा नहीं, वरन्  ध्यान की एकाग्रता में प्रकट होगी ।    

और मनुष्यों की ढिठाई देखो कि वह इसकी तुलना वर्जिल (virgil)  और होमर (homer) की कृतियों से करते हैं, वे अभी इसे जान और समझ नहीं सके हैं । शायद सुदूर भविष्य में वे इसे समझने योग्य बन सकें । एक नयी पीढ़ी, जो नयी चेतना से युक्त होगी,  इसे समझने योग्य होगी । मैं तुम्हें दृढ़ता पूर्वक करती हूं कि इस नीलाकाश के नीचे ऐसा कुछ भी नहीं है, जो ‘सावित्री’ के सदृश हो, उसकी तुलना कर सके । यह रहस्यों का रहस्य है, उत्कृष्ट महाकाव्य है, उच्चतम साहित्यिक कृति है, श्रेष्ठतम अन्तर्दर्शन है और एक महान् कार्य है । यदि केवल इसकी पंक्तियों की दृष्टि से ही इसकी परख करें जो उन्होंने लिखी है तो वह बेमिसाल है और न ही मानव-भाषा के शब्द ‘सावित्री’ की समीक्षा करने में समर्थ है । यह शब्दातीत रचना है काव्यों की श्रृंखला से परे की कृति है । इसकी महत्ता एवं मूल्य अपरिमित है । यह  अपने विषय में शाश्वत है और आग्रह (Appeal) में अनंत अपनी शैली में अनुपम एवं प्रस्तुतीकरण में अत्यंत सशक्त है । ज्यों – ज्यों तुम इसकी गहराई में प्रवेश करोगे, एक उत्कृष्टता में ऊपर उठा लिये जाओगे । यह एक अत्यंत बहुमूल्य उपहार है, जो श्रीअरविन्द   ने मनुष्य को प्रदान किया है, ‘कहूं जितना श्रेष्ठतम सम्भावित हो सकता था । 

 यह क्या है, मनुष्य कब जान पायेगा ? कब सत्य का जीवन जीने की ओर तत्पर होगा, उत्कण्ठित होगा ? वह कब इस महान् संसिद्धि को अपने जीवन में अपनायेगा ? यह अभी तक ज्ञात नहीं, आगे देखना है ।  

मेरे बच्चे, प्रत्येक दिन जब भी तुम ‘सावित्री’ पढ़ो तो समुचित मनोभाव से पढ़ो । इसके पृष्ठ खोलने से पहले एकाग्रता लाओ  और अपने मन मस्तिष्क को जितना संभव हो सके,  इतना रिक्त करने का प्रयास करो, किसी विचार-तरंग को बाधा मत पहुँचाने दो,  इसकी सीधी राह हृदय से होकर गयी है । मैं सच कहती हूं कि यदि तुम इस अभीप्सा के साथ हृदय को एकाग्र करो तो तुम चैत्य-अग्नि को प्रज्वलित कर सकते हो । बहुत कम समय में, संभवत: कुछ ही दिवसों में, पवित्रीकरण की इस प्रक्रिया को साध सकते हो, जो तुम पहले कर सकने में सफल नहीं हो पा रहे थे, वह ‘सावित्री’ के पठन की सहायता से कर सकने में सफल हो सकोगे । तब तुम अनुभव करोगे कि शनै:-शनै: कितना बड़ा अंतर तुम्हें अपने में महसूस होने लगा है, कितना नवीन एवं प्रेरक । अपनी चेतना की पृष्ठभूमि में इसे पढ़ोगे तो मानो या श्रीअरविन्द के प्रति तुम्हारी भेंट (Offering) होगी । तुम्हें प्रतीत होगा जैसे सावित्री अब परिवर्तित हो गई है, जैसे वह एक जीवंतसत्ता एक मार्गदर्शक बन गई है, मैं फिर करती हूं जो जीवन में इसकी आवश्यकता महसूस करता है वह सावित्री की सहायता से ऊपर चढ़ने में अवश्य समर्थ होगा और योग की सबसे ऊपरी सीढ़ी तक पहुंचने योग्य बन जायेगा । तथा वह रहस्य समझ लेगा, जिसे ‘सावित्री’ प्रस्तुत करती है और वह भी किसी गुरु की सहायता के बिना । सर्वोत्तम सुविधा यह है कि वह इस योग का अभ्यास कहीं भी रहकर कर सकेगा, उसके लिये ‘सावित्री’ ही उसका एकमात्र मार्गदर्शन करेगी । जब भी किसी कदम पर उसे कुछ जानने की आवश्यकता होगी ‘सावित्री’ में उसे वह मिल जायेगा । यदि कठिनाई के समय व्यक्ति अनिश्चय में रहता है और वह नहीं जानता कि उसे किधर मुड़ना है, किधर से आगे बढ़ना है और कैसे इस बाधा से ऊबरना है तथा प्रत्येक क्षण हम मनुष्यों को अपने अधिकार में करने वाली असमंजस और अनिश्चितताओं की स्थितियों से कैसे मुक्त होना है, तब यह सब असमंजस और अनिश्चितताएँ,  जो प्रत्येक क्षण हम मनुष्यों को अपने अधिकार में करती रहती है, तब उसे ‘सावित्री’ के द्वारा आवश्यक संकेत एवं ठोस सहायता प्राप्त होगी । यदि वह अपने को बहुत शांत और खुला रखेगा और बहुत गहनता से सही रास्ता पाने की अभीप्सा करेगा तो सदैव ही उससे प्रतीत होगा कि किसी अदृश्य हाथ के सहारे वह आगे ले जाया जा रहा है । यदि उसमें दृढ़-विश्वास है, अपने को देने की सच्ची लगन है, अनिवार्य गाम्भीर्य है, तो वह  अपने अन्तिम लक्ष्य तक पहुंच जायेगा ।

 नि:संदेह ‘सावित्री’ मूर्त सत्ता है, जीवंत जागृत तत्व है और पूर्ण काव्य है । वह चेतना से भरपूर है । वह परमोच्च  ज्ञान है और सभी मानवीय दर्शनों एवं धर्मों से ऊपर है । वह आध्यात्मिक राह है, योग है, तपस्या और साधना है । इस एक अकेले आकार (Body) में सब कुछ समाविष्ट है । सावित्री असाधारण शक्ति है ।  यह हृदयों को उच्च प्रकम्पनों से भर देती है । इसमें चेतना के प्रत्येक स्तर के प्रकम्पन है, संवेदन है । अपनी विपुलता में यह पूर्ण सत्य है, वह सत्य जिसे श्रीअरविन्द यहाँ पृथ्वी पर उतार कर लाये । मेरे बच्चे ! जिस रहस्य का ‘सावित्री’ प्रतिनिधित्व करती है, व्यक्ति को उसे ढूंढने का प्रयास करना चाहिये । श्रीअरविन्द ने हमारे लिये जिस भविष्यवाणी का उद्घोष किया है, वह समझने में कठिन है, किन्तु करने योग्य परम सार्थक कार्य है । 

यदि तुम मायूस हो, निराश हो तुम अवसाद से घिरे हुए हो यह जानने में समर्थ नहीं हो पा रहे हो कि तुम्हें क्या करना है, क्या नहीं; अथवा तुम्हारे साथ सदा वही घटित होता है, जो तुम्हारी इच्छा के विपरीत होता है, चाहे तुम उससे बचने की कितनी भी कोशिश करो, यदि किन्हीं विपरीत कारणों से तुम्हारा मिजाज और मनःस्थिति  नियंत्रण में न रह पा रहे हों, जीवन नीरस और निरर्थक प्रतीत हो रहा हो और तुम किसी भी तरह प्रसन्न नहीं हो पा रहे हो तो तुम तुरंत ‘सावित्री’ उठाओ और कुछ क्षणों की एकाग्रता के बाद इसका कोई भी  प्रष्ठ खोल लो, तुम्हारी समस्त अवसादपूर्ण मन:स्थिति धुएँ  के समान विलुप्त हो जायेगी और तुम महसूस करोगे कि तुममें अपनी दुरावस्था से बाहर आने की शक्ति आ गयी है और जो कुछ तुम्हें इतना पीड़ित और निराश कर रहा था अब वैसा नहीं लग रहा है । इसके विपरीत तुम अपने अंदर एक हल्कापन, एक विचित्र खुशी महसूस कर रहे हो, चेतना के पुनरागमन के साथ एक शक्ति और सामर्थ्य  तुम प्रत्येक अवरोध को जीत लेने के लिये पा गये हो, मानो तुम्हारे लिये कुछ भी असंभव नहीं रहा है और तब तुम्हें एक अक्षय आनन्द का अनुभव होगा । ऐसा आनन्द जो प्रत्येक बोझिल मनोवस्था को पवित्र एवं निर्मल करता है । मनोयोग से ‘सावित्री’ की कुछ पंक्तियाँ पढ़ो और वे तुम्हारी आन्तरिक सत्ता का ‘सावित्री’ से सम्पर्क स्थापित कर देंगी । ‘सावित्री’ की अनुपम एवं साधारण शक्ति को कुछ पंक्तियां पढ़ने के बाद अनुभव करोगे यदि तुम अचंचल मनोभाव से अपने को एकाग्र कर सको, तब तुम अपनी उन समस्याओं का समाधान पाने में समर्थ हो पाओगे जो तुम्हें उद्वेलित कर रही थी । तुम्हें केवल ‘सावित्री’ को खोलना भर है – बिना सोचे, बिना पूर्वाग्रह  के और तुम अपनी समस्या का उत्तर पा लोगे  और यह सब तुम अंतर के पूर्ण विश्वास के साथ करो, सच्चाई से करो, परिणाम निश्चित है,  निःसंदिग्ध है ।  

-- श्री माँ