Daily Quotes

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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

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प्रतिकूल जीवन परिस्थितियाँ

जीवन की स्थितियाँ

परमात्मा ने मानव मात्र को अपनी प्रकृति को संतुलित तथा ईश्वरमय बनाने के लिये जीवन के मौलिक सिद्धांतों को जीने की सहज तथा सरल विधा बनाई है । उनका अनुशीलन करके ही वह अपने जीवन को स्थायी प्रसन्नता शांति और आनंद की उपलब्धि कर सकता है ।      

आज संसार का जीवन पूर्णतया अशांत है । किसी को शारीरिक अशांति है, किसी को मानसिक, किसी को प्राणिक तथा किसी का संपूर्ण जीवन ही अशांत है । परिणाम स्वरुप मानव जीवन आंतरिक आघातों तो एवं प्रहारों से भरा हुआ है । जबकि हमारा आंतरिक जीवन आनन्दमय होना चाहिये । श्री अरविन्द के यह वचन हमारे जीवन को पूर्ण आधार देते हैं – संसार के जीवन में शांति को प्राप्त करना कभी सरल नहीं होता और यह कभी अनवरत नहीं होता, जब तक कि मनुष्य अपने अंदर की गहराई में नहीं जीता और जीवन की बाह्य गतिविधियों को सत्ता के उपरितलीय स्तर पर नहीं लेता ।‘      

अपने अंदर जीना सीखोसदैव अंदर से कार्य करोअपने अंदर जीयो, बाह्य परिस्थितियाँ कभी तुम्हें हिला न सके । उपरीतलीय मन मस्तिष्क के स्तर पर जीया जाने वाला जीवन आघातों और प्रहारों की दया पर रहता है ।    

समूची सत्ता में अंदर से शांत रह कर ही इस स्थिति पर विजय पाई जा सकती है ।

शरीर की अवस्था

थकान –

थकान से शरीर में शिथिलता तथा तमस आ जाता हैथकान न आये इसके लिये जागरूक रहना होगा। समय पर पर्याप्त आराम लेने का संकल्प करें , पर्याप्त आराम शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है । पर्याप्त नींद लेने से एकाग्रता तथा आंतरिक ज्ञान में वृद्धि होती है ।

अभ्यास –

सोने से पूर्व पूरी तरह एकाग्र होकर शरीर के तनाव को इस तरह की कल्पना करके शिथिल करें मानो शरीर कोई हल्की चीज का बना हो । अपनी प्राण शक्ति अर्थात् श्वास को शांत करें । जितना संभव हो अधिक से अधिक शांत करें। यदि मस्तिष्क शांत न हो तो शांति–शांति– का शब्द अंदर-अंदर दोहरायें।     

अब मस्तिष्क की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए परम प्रभु से महान् शांति, स्थिरता तथा नीरव होने के लिये प्रार्थना करें । अपने संकल्प को शांति, स्थिरता तथा निश्चल नीरवता पर केंद्रित करें । भागवत कृपा से प्रार्थना करें कि वह तुम्हारी नींद पर नजर रखें । धीरे से कहें – कहते-रहे मुझे सोना है, मुझे नींद आ रही है । धीरे-धीरे मौन हो जायें । भगवान की ज्योति (लौ) का ध्यान करते हुए भागवत चेतना का स्मरण करते रहें । अच्छी सहज नींद आ जायेगी जो दिन भर के लिए स्फूर्ति प्रदान करती है।

रोग की इच्छा –

वास्तव में 90% बीमारियां शरीर के अवचेतन भय का परिणाम होती है । यह गुप्त चिंता के रूप में मनुष्य के अंदर छिपा रहता है । बार-बार रोगी दोहराता है ‘अब क्या होगा’ कहीं मुझे अमुक बीमारी तो नहीं हो गई है । आदि – आदि । यदि चिकित्सक कह दे कि इस रोग में तुम्हें दर्द भी हो सकता है । रोगी भय मिश्रित कल्पना करने लगता है कि मुझे दर्द होगा । और थोड़ा-थोड़ा करके भय की रचना से ही दर्द बढ़ जाता है ।   

रोग का कारण –

भागवत शक्ति की कृपा पर विश्वास का अभाव ही रोग का कारण है ।

अभ्यास –

दर्द के समय यदि चेतना भगवान के ऊपर अर्थात् ऊपर की ओर केंद्रित हो तो दर्द चला जाता है ।   

प्रयोग –
  • चिंता की जगह भगवान पर श्रद्धा व विश्वास लायें ।  
  • भगवान का एक रूप सत्  है । ब्रह्मांड के ऊपर परे या पीछे परम सत् है । अगर रोगी उसके (परम सत्) के साथ निरंतर शांत तथा नीरव रह कर एकाग्रता तथा ज्ञान की गहराई में संपर्क बनाये रख सके तो सभी शारीरिक रोगों को इस आध्यात्मिक प्रयोग द्वारा दूर किया जा सकता है ।    
  • शारीरिक रोग एक पाठ के रूप में आते हैं । रोग की अवस्था में रोगी जितना अंदर से शांतिस्थिरता तथा समता में रहे रोग जल्दी आरोग्य होता है ।    
  • रोग की अवस्था में अपने शरीर के अंदर जाकर रोग वाले भाग पर मन को एकाग्र कर वहां भागवत शांति का आव्हान कर उसे संकल्पपूर्वक उतारना । यह रोग निर्मूल करने का सबसे सटीक ऊपाय है ।   
उदाहरण –

श्रीमां ने बताया है कि एक रोगी को पेट में असहनीय दर्द था । मां ने उसे लेटने को कहा और कहा कि अब तुम अपने पेट के अंदर एकाग्रता द्वारा शांति को उतारो । निरंतर मन में शांति-शांति—-दोहराओं ।     

रोगी का चिंता व अशांति से भरा मस्तिष्क शांत हो गया , और उसका दर्द सचमुच चला गया । 

प्राण की अवस्था

अवसाद कारण –

अवसाद दो कारणों से आता है- प्राणिक तुष्टि के अभाव में या फिर शरीर के स्नायुओं में अत्यधिक थकावट से। 

सभी कष्ट, अवसाद, निरुत्साह, घृणा, क्रोध प्राण से आते हैं। जो प्रेम को घृणा में बदल देते हैं । घृणा मनुष्य के अंदर बदले की भावना उत्पन्न करती है। व्यक्ति हानि पहुंचाने और नष्ट करने के लिए उत्तेजित होता है। जब चीजें कठिन हो, व्यक्ति के मन की न हो तो यही बात उसे हतोत्साहित करती है, तब व्यक्ति के अंदर ऊर्जा, बल, साहस नहीं रहता । इच्छा शक्ति एक मुरझाए पौधे जैसी हो जाती है।

श्री अरविंद कहते हैं – कभी अवसाद के आगे नहीं झुकें। समस्त अवसाद बुरा होता है क्योंकि वह चेतना को नीचे खींचता है, ऊर्जा को खर्च कर देता है और विरोधी शक्तियों के प्रति द्वार खोल देता है।

निदान -
  • शरीर को ढीला छोड़कर बिस्तर पर आराम से सीधा लेट जायें । पवित्र कल्पना या स्वप्न लोक में पहुंचने की कोशिश करें । इस क्रिया को बार-बार दोहरायें ।  
  • प्राणिक  इच्छाओं, कामनाओं से मन को हटाकर किसी उच्चतम चेतना या गहनतर चेतना में मन को कल्पना द्वारा स्थिर करें । उदासी, अवसाद को दूर भगाने की कोशिश करें । इस क्रिया को बार-बार दोहरायें ।  
  • अवसाद के वशीभूत न होने का संकल्प करना ।   
  • जब आंतरिक मांग की पूर्ति न हो और अवसाद आ ही जाये तब परमात्मा से प्रार्थना द्वारा अंदर से शांति से मुकाबला करने की शक्ति मांगे और दृढ़ता पूर्वक अवसाद को निकाल फेकें । 
  • भूल पर पश्चाताप करें । दिव्य ज्योति तथा शक्ति का आव्हान करें ।    
प्रायोगिक मंत्र -

स्थिर होकर बैठें, वैश्विक कल्पना के साथ यह मंत्र दोहरायें 

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: । 

पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।। 

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्ति ब्रह्म शान्ति: । 

सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ।।

।। ॐ शान्ति शान्ति शान्ति: ।। 

अवसाद कारण –

अवसाद दो कारणों से आता है- प्राणिक तुष्टि के अभाव में या फिर शरीर के स्नायुओं में अत्यधिक थकावट से। 

सभी कष्ट, अवसाद, निरुत्साह, घृणा, क्रोध प्राण से आते हैं। जो प्रेम को घृणा में बदल देते हैं । घृणा मनुष्य के अंदर बदले की भावना उत्पन्न करती है। व्यक्ति हानि पहुंचाने और नष्ट करने के लिए उत्तेजित होता है। जब चीजें कठिन हो, व्यक्ति के मन की न हो तो यही बात उसे हतोत्साहित करती है, तब व्यक्ति के अंदर ऊर्जा, बल, साहस नहीं रहता । इच्छा शक्ति एक मुरझाए पौधे जैसी हो जाती है।

श्री अरविंद कहते हैं – कभी अवसाद के आगे नहीं झुकें। समस्त अवसाद बुरा होता है क्योंकि वह चेतना को नीचे खींचता है, ऊर्जा को खर्च कर देता है और विरोधी शक्तियों के प्रति द्वार खोल देता है।

मानसिक अवस्थाएँ -

मानसिक कोलाहल –

मन में विचार निरंतर भिनभिनाहट करते हुए आते हैं । और वे सदैव मस्तिष्क को घेरे रहते हैं । और मन गोल-गोल चक्कर लगाता है । प्रत्येक कार्य करते समय मस्तिष्क में विचारों का तांता लगा रहता है । इस तरह मस्तिष्क की यह दोहरी अवस्था होती है । एक तरफ कार्य को करना तथा दूसरी ओर विचारों का खिंचाव । 

कारण -
  • अशांत तथा अस्थिर मन, एकाग्रता का अभाव । 
  • बाह्य विषयों और प्रवृत्तियों में रुचि इसके मूल कारण है । 
  • भौतिक विषयों में रुचि, कामना और इच्छा ।   
निदान –
  • जब मस्तिष्क के अंदर विचारों की भिनभिनाहट शुरू हो जाये । सावधान सजग होकर मस्तिष्क का निरीक्षण करना शुरू कर दें ।  
  • बिना उद्विग्न हुए चुपचाप विचारों को अलग हटाते रहे । 
  • विचारों पर नियंत्रण करने या इसके साथ युद्ध करने या दबाने की कोशिश करने की अपेक्षा पीछे हटकर इसे देखना, अपने आप को सचेतन, स्थिर और अचंचल करने के लिये आदत डालना आवश्यक है ।   
  • अंत में एकाग्रता के द्वारा भगवान की ज्योति या प्रकाश के दर्शन के लिये संकल्प के साथ अभीप्सा  युक्त प्रार्थना करना ।   
  • भागवत प्रकाश पर मन एकाग्र होते ही मन नीरव हो जाता है । यही सच्चा समाधान है ।    
मंत्र जाप –

निरंतर एकाग्रता द्वारा हर कर्म करते समय

ॐ शांति…… शांति…….. शांति……… का मौन जाप अंदर चलने दे । 

अस्थिर मन -

अस्थिर मन -

मनुष्य की भौतिक इच्छाओं की कामनाएं निरंतर जागृत होकर उसके मन को अस्थिर करती रहती है । अस्थिर मन वाला मनुष्य वासनाओं और आवेगों के तूफान का दास बन जाता है क्या करें, क्या न करें । इसी में वह अनेक विचारों के भंवर में फंस कर अस्थिर हो जाता है।

निदान -
  • प्रातः उठने तथा रात्रि सोने से पूर्व कुछ पल परम प्रभु की दिव्य शांति की कल्पना करते हुए एकाग्र हो जायें । मन में धीरे-धीरे शांति………. शांति………. दोहरायें । 
  • आध्यात्मिक पुस्तक पढ़ें ।   
  • नेत्र बंद कर बैठे रहें । फिर अपने इष्ट का स्मरण पर उनके चित्रों का दर्शन  पवित्र – शांत भाव से स्मरण करे ।  
  • उठकर मुख्य द्वार तक जायें ।  
  • मुख्य द्वार पर स्थिर खड़े होकर आकाश मार्ग की ओर दृष्टिकर कहें – 

हे भगवती माता, परम प्रभु आप आपकी शांति, शक्ति, ज्योति, आनंद मेरे अन्दर प्रवेश करें ।   

उतरो – उतरो — उतरो — प्रभु । हमारे अन्दर अवतरित हों । 

प्रभु के आव्हान के घनीभूत प्रकम्पन, हमारे अन्दर परमात्म शक्ति के अवतरण की अनुभूति कराते हैं ।    

ॐ नमो भगवते ……….-. ॐ नमो भगवते ………

 मंत्र जप करें  ।

मंत्र जप के यह ध्वनि प्रकंपन हमारे आस्तीन मस्तिष्क को स्थिर एवं शांत करने में पूर्ण सहायक होंगे ।

संयोजन : सुमन कोचर

फरवरी, 1954

नशा

नशा क्या है?

नशा करना निम्नतर प्राणिक गतिविधि है। नशा विष है, घातक है। नशा चक्रव्युह है। क्षणिक झूठा सुख, जीवन भर का दुख है।

नशा क्या करता है?

भारी नुकसान करता है। अज्ञान, अंधकार, असत्य और अहंकार में धकेल देता है। चिड़चिड़ापन, बेफिक्री, उत्तेजना पैदा होना। नशा करने वाला धन, वस्तुएं और सम्मान दांव पर लगा देता है। चोरी, हिंसा, गुनाह की आदत हो जाती है। स्मृति यंत्र कमजोर, मतिभ्रष्ट तथा संकल्प शक्ति नष्ट हो जाती है। दिव्य ऊर्जा खत्म कर देता है। जीवन को तबाह कर मृत्यु की ओर धकेल देता है। 

नशा करने के कारण :

मानसिक तनाव, अवसाद, दुख, भय, तमस, निष्क्रियता, नशे के संगी साथी है। जीवन में किसी भी कठिनाई से उत्पन्न अवसाद, निराशा, तनाव के आगे झुकना जीने बुरा तरीका है। अवसाद की जड़ में अहं है। किसी भी प्राणिक कामना की पूर्ति न होने पर अहंकार का भूत हमारे ऊपर सवार हो जाता है। घृणा उत्पन्न होती है निराशा, हतोत्साह और अवसाद आता है। जो चेतना को नीचे गिराता है।