Daily Quotes

"

When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

"

जीवन - विज्ञान

अपने आप को जानना और संयत करना -
लक्ष्यहीन जीवन दु:खी जीवन होता है।

तुम में से प्रत्येक का अपना लक्ष्य होना चाहिये । परन्तु यह कभी न भूलना कि तुम्हारे लक्ष्य के गुणों पर जीवन के गुण निर्भर होंगे ।    

तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिये उच्च और विशाल, उदार और निष्काम l तब तुम्हारा जीवन तुम्हारे अपने लिये और दूसरों के लिये भी बहुमूल्य हो जायेगा ।   

परंतु तुम्हारा आदर्श चाहे जो भी हो, तुम उसे तब तक पूर्ण रूप से नहीं प्राप्त कर सकते जब तक कि तुम अपने अंदर पूर्णता नहीं पा लेते । 

अपनी पूर्णता प्राप्त करने के लिये सबसे पहला पग है अपने विषय में सचेतन होनाअपनी सत्ता के विभिन्न अंगों और उनकी अलग-अलग क्रियाओं के विषय में सचेतन होना । तुम्हें इन सब अंगों को एक-दूसरे से अलग करके देखना और पहचानना सीखना चाहिये ताकि तुम स्पष्ट रूप से यह पता लगा सको कि तुम्हारे अंदर जो सब क्रियाएं होती हैं, तुम्हें कर्म में जोतने वाले जो अनेक प्रकार के आवेग – प्रवेग, प्रतिक्रियाएं और परस्पर-विरोधी इच्छाएं तुम्हारे अंदर उठती हैं, उन सब का मूल कहां है । यह एक श्रमसाध्य अध्ययन होगा और इसके लिये बहुत अधिक लगन और सच्चाई की आवश्यकता है । क्योंकि मानव स्वभाव की, विशेषकर मन के स्वभाव की यह एक सहज – प्रवृत्ति है कि हम जो कुछ सोचते, अनुभव करते, कहते और करते हैं उसकी हम एक अनुकूल व्याख्या दे डालते हैं । जब हम बहुत अधिक सावधानी के साथ इन सब क्रियाओं को देखेंगे मानों इन्हें अपने उच्चतम आदर्श के न्यायालय में पेश करेंगे और उसके निर्णय के साथ झुक जाने को एक सच्चा संकल्प बनाये रखेंगे केवल तभी हम यह आशा कर सकते हैं कि हमारे अंदर एक ऐसा विवेक उत्पन्न होगा जो कभी भूल न करे । अगर हम सचमुच उन्नति करना और अपनी सत्ता के सत्य को जानने की क्षमता प्राप्त करना चाहते हैं, अर्थात् उस एक बात को जान लेना चाहते हैं कि इसके लिये वास्तव में हमने जन्म लिया है जिसे हम इस पृथ्वी पर अपना उद्देश्य कह सकते हैं तो फिर जो चीज हमारी सत्ता के सत्य का खंडन करती है, जो उस चीज उसका विरोध करती है, उन सबको हमें खूब नियमित रूप से और निरंतर होने वाली एक क्रिया के द्वारा अपने अंदर से निकालते रहना होगा अथवा उन्हें अपने अंदर नष्ट करते रहना होगा । बस इसी तरह धीरे-धीरे हमारी सत्ता के सभी भाग सभी अंग संगठित होकर हमारे चैत्य केंद्र के इर्द-गिर्द एक पूर्ण सुसमंजस वस्तु का रूप ग्रहण कर सकेंगे । इस एकीकरण के कार्य को एक हद तक पूर्णता प्राप्त करने के लिये एक लंबे समय की आवश्यकता होती है । इसीलिए, इसे सिद्ध करने के लिये, हमें धैर्य और सहनशीलता-रूपी अस्त्रों से सुसज्जित होना चाहिये और यह निश्चय कर लेना चाहिये कि अपने प्रयास को सफल बनाने के लिये जितने दिनों तक अपना जीवन बनाये रखने की आवश्यकता होगी उतने दिनों तक बनाये रखेंगे  ।

श्री मां