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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"नये वर्ष के जन्म के साथ-साथ हमारी चेतना का भी नया जन्म हो !
चलो, भूतकाल को बहुत पीछे छोड़कर हम ज्योतिर्मय भविष्य की ओर दौड़ चलें ।
हे प्रभु, वर्ष का अंत हो रहा है और हमारी कृतज्ञता तेरे सामने झुक रही है।
हे नाथ ! वर्ष का नया जन्म हो रहा है और हमारी प्रार्थना तेरी ओर उठ रही है।
वर दे कि यह हमारे लिए भी एक नये जीवन की उषा हो ।
प्रार्थना भागवत कृपा के आव्हान की विधा है । प्रार्थना मानव को भगवान द्वारा प्रदत्त समस्त अद्भुत उपहारों में से एक है । हमारा सारा जीवन भगवान को निवेदित प्रार्थना हो ।
श्रीमाँ कहती है – यदि किसी व्यक्ति में बिल्कुल ज्ञान नहीं है लेकिन भगवान की कृपा में पूर्ण विश्वास है और यदि यह विश्वास है कि दुनिया में भागवत कृपा जैसी कोई चीज है और यह हमारी सच्ची प्रार्थना, उत्कट अभीप्सा तथा आव्हान् का उत्तर दे सकती है ।
महर्षि श्रीअरविन्द कहते है – ‘‘तुम जब अपने-आपको देते हो तो पूरी तरह दो, बिना किसी माँ ग के, बिना किसी शर्त के और बिना किसी संकोच के दो, ताकि तुम्हारे अन्दर जो कुछ है, वह सब भगवती माँ का हो जाये, और कुछ भी अहं के लिये या अन्य किसी शक्ति को देने के लिये बचा न रहे ।’’
‘‘तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती माँ की कृपा और रक्षा भी उतनी ही अधिक रहेगी । और जब भगवती माँ की कृपा और अभय-हस्त तुम पर है तो फिर कौन-सी चीज है जो तुम्हें स्पर्श कर सके या जिसका तुम्हें भय हो ?’’
‘‘इसका कृपा स्पर्श कठिनाई को सुयोग में, विफलता को सफलता में और दुर्बलता को अविचल बल में परिणत कर देता है । क्योंकि भगवती माँ की कृपा परमेश्वर की अनुमति है, आज हो या कल, उसका फल निश्चित है, पूर्व निर्दिष्ट, अवश्यंभावी और अनिवार्य है ।
श्रीमाँ कहती है – तुम प्रयास करो और तुम निश्चय ही परिणाम का अनुभव करोगे। यदि मनुष्य भागवत कृपा का मात्र आव्हान करता है, अपनी महत् अभीप्सा द्वारा स्वयं को सचेतन रूप से उसके हाथों में सौंप देता है तो कृपा स्वयं ही यह चुनती है कि उसे हमारे लिये क्या करना हैं ?
निःसंदेह, जो पूर्ण समर्पण द्वारा स्वयं को समग्रता से भगवान को अर्पित कर देता है तो उस व्यक्ति को यह सवाल कभी नहीं करना चाहिये कि मैंने तो इस विचार से यह किया था कि मुझे यह प्राप्त होगा । हमें अपनी प्रार्थना पूर्ण सच्चाई, दिव्य अभीप्सा, सच्ची विनम्रता और महान् संकल्प के साथ ऐसे सूत्रबद्ध करना चाहिये कि जैसे भगवान हमें देख रहे हों और उसके बाद चुनाव कृपा के ऊपर छोड़ देना चाहिये कि वह इसे करेगी या नहीं । हमें इस समय बहुत समझदारी से सब कुछ भागवत इच्छा पर छोड़कर दृढ़ विश्वास के साथ कहना चाहिये – प्रभो ! तेरी इच्छा पूरी हो ।
श्रीमाँ कहती है – निःसंदेह कठोर तर्क वाले लोग तुमसे कहते है – प्रार्थना क्यों ? अभीप्सा क्यों ? याचना क्यों ? भगवान जो चाहते हैं वही करते हैं और जो चाहेंगे वहीं करेंगे।
सौदेबाजी का सारा भाव कपट है जो प्रार्थना का सारा मूल्य हर लेता है ।
हे प्रभो ! मैं तुझसे प्रार्थना करती हूँ कि तूं मेरे चरणों को रास्ता दिखा ।
मेरे मन को प्रकाशित कर ताकि मैं हर क्षण और हर चीज में ठीक वहीं करूं,
जो तूं मुझसे करवाना चाहता है ।
‘‘मेरे मन का प्रत्येक विचार, मेरे हृदय का हर एक भाव,
मेरी सत्ता की हर एक गति,
हर एक भावना और हर एक संवेदन,
मेरे शरीर का हर एक कोषाणु,
मेरे रक्त की हर बूंद, सब, सब कुछ तुम्हारा है,
पूरी तरह तुम्हारा है, बिना कुछ बचाये तुम्हारा है ।
तुम मेरे जीवन का निश्चय कर सकते हो या मेरे मरण का, मेरे सुख का या
मेरे दुःख का, मेरी खुशी का या मेरे कष्ट का; तुम मेरे साथ जो भी करो,
मेरे लिए तुम्हारे पास से जो भी आये वह मुझे भागवत आनन्द की ओर ले जायेगा ।’’
आज वर्ष बीत रहा है,
नववर्ष की परम् पावन बेला निकट आ रही है ।
हम जगत में भटक चुकने के बाद प्रभु की ओर मुड़ने की बजाय पहले ही सचेतन होकर अपने मन, हृदय और आत्मा को प्रभु की ओर मोड़ लें ताकि हमारे जीवन के कष्ट, कठिनाईयॉं, विपरित परिस्थितियॉं सब कुछ आनंद और विश्रांति के परम् स्त्रोत बन जायें ।
श्रीमाँ ने कहा है, ‘‘जो भूतकाल में हो चुका है उसके लिये पछताओ मत और क्या होगा, उसकी कल्पना न करो । वर्ष के अंतिम दिवस पर हमें हर क्षण भूतकाल को धूल की तरह झाड़कर फेंक देना चाहिये ताकि वह अछूते पथ को मैला न कर सके जो हर क्षण हमारे आगे खुलता रहता है तथा नववर्ष प्रारंभ के प्रथम क्षण को प्रभु के चरणों में समर्पित कर पूर्ण आध्यात्मिक प्रगति के लिये, महत्तर वस्तु की अभीप्सा के लिये प्रार्थना करनी चाहिये ।
हे प्रभु ! हमारे अन्दर जो कुछ बनावटी और मिथ्या है, जो कुछ ऊपरी दिखावा और अनुकरण करने वाला है, वह सब कुछ आज सन्ध्या समय हम तुझे समर्पित कर रहे हैं । वह सब कुछ समाप्त होने वाले वर्ष के साथ-साथ हमारे अन्दर से गायब हो जाये । जो कुछ पूरी तरह से सत्य, निष्कपट, ऋजु और पवित्र है, वही आरम्भ होने वाले नये वर्ष में हमारे अन्दर बना रहे ।
हम सब मिलकर शांत हृदय से सर्वोच्च अभीप्सा के साथ समूची सृष्टि की ओर से इस वर्ष की समाप्ति तथा नववर्ष शुभागमन पर श्रीमाँ की दिव्य वाणी से मुखरित प्रार्थना करें ।
हे समस्त वरदानों के परम वितरक, तुझे, जो इस जीवन को शुद्ध, सुंदर और शुभ बनाकर उसे औचित्य प्रदान करता है, तुझे, हे हमारी नियति के स्वामी, हमारी अभीप्साओं के लक्ष्य, इस नये वर्ष का पहला क्षण समर्पित था ।
कृपा कर कि इस समर्पण के कारण यह पूरी तरह से महिमान्वित हो; जो तुझे पाने की आशा करते हैं, वे तुझे ठीक मार्ग से ढूंढें, कृपा कर, जो तुझे ढूंढते हैं वे तुझे पा लें और जो यह जाने बिना कष्ट पाते हैं कि सच्चा उपचार कहां है वे यह अनुभव करें कि तेरा जीवन थोड़ा-थोड़ा करके उनकी अंधेरी चेतना की कठोर पपड़ी को छेदता जा रहा है ।
मैं प्रगाढ़ भक्ति और असीम कृतज्ञता के साथ तेरी हितकारी भव्यताओं के आगे प्रणत हूँ । पृथ्वी की ओर से मैं तुझे अपने-आपको प्रकट करने के लिये धन्यवाद देती हूँ । मैं उसकी ओर से तुझ से याचना करती हूँ कि तू अपने-आपको प्रकाश और प्रेम की अबाध वृद्धि में अधिकाधिक अभिव्यक्त कर ।
हमारे विचारों, हमारे भावों और हमारे कर्मों का प्रभु सत्ता सम्पन्न स्वामी हो जा ।
तू ही हमारी सत्ता की यथार्थता, एकमात्र सद्वस्तु है ।
तेरे बिना सब कुछ मिथ्या और भ्रम है, सब कुछ दुःखपूर्ण अंधकार है ।
तेरे अंदर ही है जीवन,ज्योति और आनंद ।
तेरी ही अंदर है परम् शांति ।
तेरी जय हो, हे भगवान् ! हे सर्व ! विध्न विनाशन् !
ऐसा वर दे कि हमारे अन्दर की कोई भी चीज तेरे कार्य में बाधक न हो !
ऐसा वर दे कि कोई भी चीज तेरी अभिव्यक्ति में रूकावट न डाले ।
ऐसा कर दे कि सभी बातों में तथा प्रत्येक क्षण तेरी ही इच्छा पूर्ण हो ।
हम यहॉं तेरे सम्मुख उपस्थित हैं,
जिससे कि हमारे अन्दर,
हमारी सत्ता के अंग-प्रत्यंग में,
उसके प्रत्येक कार्य में,
उसकी सर्वोच्च ऊँचाईयों से लेकर शरीर के क्षुद्रतम कोषों तक में तेरी ही इच्छा कार्यान्वित हो ।
ऐसी कृपा कर कि हम तेरे प्रति सम्पूर्ण रूप से तथा सदा के लिए विश्वास पात्र बन सके ll
हम अन्य प्रत्येक प्रभाव से अलग रहते हुए एकदम तेरे प्रभाव के अधीन हो जाना चाहते हैं ।
ऐसा वर दे कि हम तेरे प्रति एक गभीर और तीव्र कृतज्ञता रखना कभी न भूलें।
ऐसी कृपा कर कि प्रत्येक क्षण जो सब अद्भुत वस्तुएं तेरी देन के रूप में हमें मिलती हैं, उनमें से किसी का भी हम कभी अपव्यय न करें ।
ऐसा कर दे कि हमारे अन्दर की प्रत्येक चीज तेरे कार्य में सहयोग दे और सब कुछ तेरी सिद्धि के लिए तैयार हो जाये ।
तेरी जय हो, हे परमेश्वर ! हे समस्त सिद्धियों के अधिश्वर !
प्रदान कर हमें अपनी विजय में एक सक्रिय और ज्वलंत, अखंड और अचल- अटल विश्वास l
हे निखिलेश्वरी !
अपने प्रछन्न ज्ञान के भास्कर में, रक्षित रहने वाली हे ऋतेश्वरी !
और सत्य की ज्योति गहराई के भीतर अभिमुख बनी हुई द्रव्यों पर,
अब तक बंद पड़े स्वर्गों के भीतर, ध्यान-स्थित महान् वाचा पश्यंति !
हे प्रज्ञा-शोभा ! हे त्रिभुनेश्वरी ! कला-विज्ञ, शाश्वत वधू ! और विधात्री !
एक बार ‘काल’ की सुनहरी छड़ पर निज चिंतामणि-कर का सुख-स्पर्श भर लौट ना जा सब-कुछ को व्यर्थ बनाकर, जैसे कि काल सह न सका हो उसको , खोल ना पाया हो ‘प्रभु’ पर निज अंतर अपने रचे जगत् से भी अभिमुक्ते ! अप्राप्य ऊर्ध्व लोकों को में भी तो हे ! जगदानंद की हे अभिदीप्त निर्झरी ! जगती तुझे ढूंढती जब बाहर हो, तब छिपकर अंतर में रहने वाली,
हे आनंद-स्वरूपिणी ! सुखनंदनी हे ! हे रहस्यमयि ! हे सरस्वती !
अपनी प्रतीकात्मक शुभ्र वेद वाचा ले !
स्व-शक्ति के तीव्र प्रेम के प्रवाह को,
अब मूर्तित होने दे वरदायिनी हे ! भू पर एक जीवंत रूप को अपने,
कर तू अब सुनियोजित भव-तारिणी हे एक पल, में निज शाश्वतता छलका दे ! इक तन में जीने निज अनंतता दे ! ‘औ’ ज्योति-सिंधुओं की रेल-पेल में,
इक मनस को ‘पूर्ण ज्ञान’ में डूबा दे ! ‘दिव्य-प्रेम’ की ‘औ’ केवल धड़कन को इक मानव – अंतर के बीच जगा दे ! हे अमरे ! नश्वर चरणों के द्वारा,
इस धरती पर रमती और विचरती, सकल स्वर्ग के सौंदर्य को लेकर,
तू मानव अंगों के बीच पूर दे ! ‘सर्व-शक्तिमयी’ प्रभु की महाशक्ति से, नश्वर संकल्प की हर एक प्रगति को, हर घटिका को सुमेखलायित कर दे !
एक मानवीय क्षण को तू ‘शाश्वत’ की, सुसामर्थ्य से अरे ठसा-ठस भर दे ! स्वर्णिम एक भाव – भंगी से अपनी, सकल ‘काल’ भावी को आज बदल दे ! औ’ अपने उन्नत शिखरों से अब तू , महासत्य का शब्द उच्चरित कर दे ! एक सत्य कर्म के इशारे पर बस, वज्र-नियति-द्वारों को आज खोल दे !
कर मां मेरा जीवन सच्चा,
तन कर सच्चा मन कर सच्चा,
रोंआ-रोंआ मेरा सच्चा l
प्राणों का हो कण-कण सच्चा; तनिक रहे नया घट कच्चा ।
कर मां मेरा जीवन सच्चा ।
प्रतिक्षण सच्चा, प्रतिपल सच्चा; भीतर सच्चा बाहर सच्चा l
होऊँ माँ में नख–शिख सच्चा, नहीं और कुछ मन में इच्छा ll
कर मेरा जीवन सच्चा l
हर हालत हर अवसर सच्चा, दम में दम है तब तक सच्चा l
सदा कसौटी पर मैं सच्चा, बरसे जब रिपु – भाला बर्छा ll
कर मेरा जीवन सच्चा l
पनपे पौधा साधन सच्चा, लगे फूल-फल उसमें सच्चा
सोने जैसा होऊं सच्चा, जननी दे यह मुझको भिक्षा ll
कर्म मेरा जीवन सच्चा l
सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मां कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत ll
ॐ असतो माँ सद्गमय l तमसो माँ ज्योतिर्गमय l मृत्येर्मामृतं गमय ll
ॐ शांति: शांति: शांति: l
तथास्तु
मन्त्र
ॐ आनंदमयि चैतन्यमयि सत्यमयि परमे l
श्री अरविन्द: शरणम मम l
ॐ नमो भगवते श्री अरविन्दाय l
श्री मातारविन्द: शरणम् मम l
ॐ तत् सत् ज्योतिररविन्द ।
तत्सवितुर्वरं रूपं ज्योतिपरस्य धीमहि यन्नः सत्येन दीपयेत ॥
योग के द्वारा हम असत्य से सत्य में, निर्बलता से शक्ति में, दुख और क्लेश से परम आनंद में, बंधन से मुक्ति में, मृत्यु से अमृत्व में, अंधकार से प्रकाश में, सम्मिश्रण से शुद्धता में, अपूर्णता से पूर्णता में, आत्म – विभाजन से एक तत्व में, माया से ईश्वर में आरोहण कर सकते हैं । योग के अन्य सभी उपयोग विशिष्ट और आंशिक लाभों के लिए होते हैं, जिन्हें सदा पाने की चेष्टा करना उचित नहीं होता । केवल वही योग पूर्ण है, जिसका लक्ष्य भगवान की पूर्णता को प्राप्त करना हो । भागवत परिपूर्णता का साधक ही पूर्ण योगी है ।
आओ, हम जैसे प्रार्थना करते हैं
इस तरह काम करें क्योंकि
वस्तुत: काम भगवान के प्रति
शरीर की सर्वोत्तम प्रार्थना है ।
हे प्रभु, मेरे मधुर स्वामी, मेरे अंदर तू ही
निवास करता और इच्छा करता है ।
यह शरीर तेरा उपकरण है,
यह इच्छा तेरी सेविका है,
यह बुद्धि तेरा यंत्र है
और यह सारी सत्ता केवल तू ही है ।
प्रार्थना जीवन का अमृत है ।
प्रार्थना में महान् रूपांतरकारी शक्ति होती है ।