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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"मानव जीवन में कथा कहानी का बहुत बड़ा महत्व है। सारगर्भित सत्य तथा दिव्य कथा-प्रसंगों का श्रवण, अध्ययन, चिंतन, मनन, मानव को चरित्रवान तथा सबल बनाकर कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है। कथाओं के माध्यम से मनुष्य सत्य और असत्य का भेद-ज्ञान प्राप्त कर अपने अंतःकरण को शुद्ध बनाकर आदर्श जीवन जीने की कला का ज्ञान प्राप्त करता है। मानव मन आलोकित होकर मनुष्य में दिव्य गुणों का विकास तथा भागवत भक्ति जागृत होती है। सत्य कथाओं का श्रवण, पठन, चिंतन अवसाद से मुक्ति हेतु अमृत औषधि है।
किसी ने मुझे (श्री माँ को) लिखा कि वह बहुत दुःखी है क्योंकि वह चाहता था कि भगवान् को समर्पित करने के लिये उसकी अनुभूति पाने और उसका कार्य करने के लिये उसे अद्भुत क्षमताएं प्राप्त हो जायें , और उसने यह भी चाहा था कि उसके पास अपार सम्पदा हो जिससे वह उसे भगवान् के चरणों में अर्पित कर सके ताकि भागवत कार्य संपन्न हो। मैंने उसे उत्तर में लिखा कि उसे शोक-संतप्त होने की कोई आवश्यकता नहीं है, और प्रत्येक व्यक्ति से केवल वही देने को कहा जाता है जो उसके पास होता है। अर्थात् उसकी उस प्रत्येक वस्तु को जिसे वह अपनी कहता है, तथा उसे, जो वह स्वयं है …..इससे अधिक कुछ भी देने को नहीं कहा जाता। तुम जो भी हो, वही स्वयं समर्पित करो। तुम्हारे पास जो भी है, उसे ही दो, और तुम्हारा अवदान पूर्ण होगा ,आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण होगा। यह तुम्हारे पास धन की मात्रा पर निर्भर नहीं करता, तुम्हारी प्रकृति की क्षमताओं की संख्या पर निर्भर नहीं करता। यह निर्भर करता है तुम्हारे समर्पण की पूर्णता पर, अर्थात् तुम्हारे अवदान की समग्रता पर। मुझे भारतीय आख्यानों की एक पुस्तक में पढ़ा हुआ एक आख्यान याद आता है जो इस प्रकार है :
एक बहुत गरीब और वृद्धा स्त्री थी जो एक जर्जर झोंपड़ी में रहती थी। उसे किसी ने एक आम खाने को दिया । उसने आधा आम खाया और शेष अगले दिन के लिये बचाकर रख दिया । क्योंकि वह आम इतना बढ़िया था कि उसे बार-बार वैसा आम मिलने की आशा नहीं थी। जब रात आई तो किसी ने उसके कमजोर दरवाजे को खटखटाया और उससे रात भर के लिये शरण मांगी। उस आगन्तुक ने अंदर आकर वृद्धा से कहा कि उसे भूख भी लगी है। वृद्धा ने जवाब दिया, “मेरे पास सर्दी से बचाव के लिये न तो आग है और न कंबल । भोजन के रूप में बस यह आधा बचा हुआ आम है जिसे आप चाहें तो खा सकते हैं। आधा मैं खा चुकी हूं।” यह आगन्तुक वास्तव में स्वयं देवाधिदेव महादेव थे और भगवान् शिव को अपने पास की एकमात्र पूंजी कुटिया और आम पूर्णरूपेण समर्पित करके वृद्धा एक आंतरिक गरिमा से धन्य हो उठी।