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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.
"सूर्य नमस्कार एक पूर्ण श्रृंखला-बद्ध गतिशील, संतुलित, वैज्ञानिक व्यायाम की अभ्यास पद्धति है। इसका सही और उचित ढंग से अभ्यास करने से हमारे शरीर के बाह्य और आंतरिक अंगों में खिंचाव उत्पन्न होता है, अंग लचीले बनते हैं। अंगों की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है।
सूर्य नमस्कार करने से संपूर्ण शरीर की सभी कार्य – प्रणालियाँ संतुलित, सुगठित तथा सामंजस्य पूर्ण बनती है। शरीर में ऊर्जा और सौन्दर्य की वृद्धि होती है।
अनादिकाल से सूर्य की आराधना, उपासना होती रही है । सूर्य नमस्कार करने के पूर्व प्रत्येक को यह ज्ञान होना चाहिये कि सूर्य की शक्ति अपरिमित है । वेद, उपनिषद, पुराण, ब्राहम्ण-ग्रंथों, महाभारत, रामायण में सूर्य की अनंत महिमा का वर्णन है । भविष्य पुराण में कृष्ण-पुत्र साम्ब को कुष्ठ रोग, पद्म पुराण में महाराजा भद्रेश्वर को श्वेत कुष्ठ, सूर्य शतक के रचियता मयुर कवि के कुष्ठ रोग को सूर्य आराधना से पूर्ण छुटकारा मिलने का स्पष्ट वर्णन है। सिकंदर के समय भारत से सूर्य-विज्ञान यूनानी अपने साथ ले गये। वहाँ से रोम, मिस्त्र, ईरान आदि देशों में सूर्य विज्ञान फैलता चला गया। रोम में 600 वर्षों तक बिना किसी चिकित्सक के केवल सूर्य-किरणों और सूर्य उपासना से रोम निवासी चिकित्सा लेते थे । मध्यकाल में भारत पर विदेशी आक्रमणों ने सूर्य-मंदिरों को जलाकर, सूर्य-विज्ञान नष्ट कर दिया । सूर्य-विज्ञान में सूर्य-स्नान, सूर्य-ऊर्जा, सूर्य-दर्शन, सूर्य-किरण चिकित्सा, सूर्य उपासना और सूर्य नमस्कार के वैज्ञानिक व्यायाम का प्रयोगात्मक वर्णन है । पाश्चात्य वैज्ञानिक और चिकित्सक सूर्य की ऊर्जा शक्ति के सफल प्रभाव को मानव शरीर पर देखकर आश्चर्य चकित हुए, उन्होंने इस पर कई पुस्तकें लिख डाली । विशेषकर लुई-कुने, रिक्ली, जस्ट, कैलाग, फिनसेन, रोलियर, स्टकर, ईब्स, बर्नर मैकफैडन ने सूर्य-विज्ञान पर शोध और प्रयोग करके इसकी महिमा को मानव मात्र को बताया। हमारे ऋषि-मुनियों के गौरव को पुन: जीवित किया। सूर्य उदयकाल से ही अपनी सशक्त ऊर्जा द्वारा लोगों को अपने-अपने कर्म में लगा देता है। सूर्य में प्रचंड प्रकाश है, जो समूचे अंधकार को निगल लेता है । सूर्य के प्रचंड ताप से वायु संचरित होकर प्रकृति शुद्ध होती है। सूर्य किरणों से खारा समुद्र जल वाष्प बनकर पृथ्वी पर मीठा जल बरसता है। जड़ जगत, प्राणी जगत, वनस्पति, पशु-पक्षी, मानव सब सूर्य की ऊर्जा से जिंदा है । सूर्य की ऊर्जा के बिना मनुष्य पीले पड़ जाते हैं । सूर्य में अमृत शक्ति है। संसार के विकसित सौंदर्य के पीछे सूर्य की प्रचंड शक्ति है । हमारे चारों ओर जो भी पनप रहा है, बड़ा हो रहा है, विकसित और शुद्ध हो रहा है वह सूर्य प्रकाश के कारण ही है । उदय और अस्त होता हुआ सूर्य पृथ्वी के किटाणुओं का नाश करता है । इसी से स्वास्थ्य खिलता है ।