Daily Quotes

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When you have faith in God, you don't have to worry about the future. You just know it's all in His hands. You just go to and do your best.

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युवा

युवा होने का अर्थ है-
  • भविष्य में जीना।
  • अपने अहं का त्याग करने के लिए तत्पर रहना। 
  • कभी किसी चीज को असाध्य न मान बैठना।

प्रगति और प्रगति करते रहने का विचार चिर युवा रहने का महामंत्र है। 

जो तुम आज नहीं कर सकते उसे कल अवश्य कर सकोगे।

केवल वे वर्ष तुम्हें वृद्ध बनाते हैं जो व्यर्थ में बिताए जाते हैं।

- श्री माँ

युवा कौन है , समस्या और निदान

युवा कौन है ?

युवा वह है जो जानता है वह कौन है , क्यों है , क्या है

क्या कमी है , क्या पाना है , उसे क्या होना है ?

युवा वह है – जिसमें भविष्य में जीने की इच्छा शक्ति हो 

सदैव सब कुछ पीछे छोड़ने – त्यागने की भक्ति हो । 

जो किसी भी चीज़ को असाध्य न मानता हो 

जो अध्यवसायी और आत्म बलिदानी हो 

युवा वह है – जो प्रतिक्षण सचेतन और जागरूक हो 

जो स्वभाव से शांत , स्थिर और मन से नीरव हो 

जिसमें एकाग्रता , सच्चाई और आंतरिक गहराई हो 

जो न हो कामनाओं , वासनाओं , इच्छाओं का गुलाम 

जो व्यक्तिगत स्वार्थ से हो मुक्त और उत्तेजना को मानता है हराम ।

युवा वह है – जो अपरिवर्तनीय संकल्प का स्वामी हो 

जो निष्कपट , उदार और ईमानदार हो

जिसके जीवन का लक्ष्य दिव्य और भगवान हो 

जिसके अन्दर प्रगति की निरन्तर प्यास हो 

युवा वह है – प्रगति के रहस्यमय यौवन को जानता हो 

जिसे प्रगति की असीम संभावना और भागवत शक्ति का ज्ञान हो ।

युवा वह है – जो खोजी , उत्साही और प्रतिभावान हो 

जो सहनशील , मेहनती , उच्चाकांक्षी और जिसमें देश का स्वाभिमान हो ।

जो निर्भीक , कठोर परिश्रमी , साहसी , बलशाली और चरित्रवान हो , 

जिसे एकता का भान हो, छू न गया कोई अभिमान हो ।

युवा वह है – जो सत्यनिष्ठ , आज्ञाकारी और धैर्यवान हो ,

जो विनयशील और प्रज्ञावान हो ।

जो सत्य संकल्पी और अंतर प्रगति का अभीप्सु हो, 

नित नयी प्रगति को उत्सुक और अभ्यासी हो;

जो स्वयं की प्रकृति के रूपांतर के लिए जिज्ञासु हो, 

जो भगवत्ता के प्रति अन्दर से खुला और विश्वासी हो,  

सत्य शक्ति का पूर्ण यंत्र बनने का अभिलाषी हो ।

युवा वह है – जो श्रद्धा, विश्ववास, त्याग और समर्पण की मिसाल हो 

जिसे अंतः शक्ति की पहचान हो 

जो आत्मा का करता सदैव सम्मान हो 

जो दिव्य गुणों की खान हो 

जिसे जीवन की पूर्णता को पाने का भान हो और पूर्णत्व का ध्यान हो ।

जो सदैव उत्सर्गवान और भगवान के प्रति निष्ठावान हो ।

युवा वह है – जिसका लक्ष्य अपने और जगत का नव – निर्माण हो । 

सार रूप में युवा वह है जो सत्यवान हो, 

जिसे हर विद्या का अक्षय ज्ञान हो 

दिव्य प्रेम, भक्ति , एकता और आनंद की संतान हो । 

समस्या क्या है ?

समस्या है जल्दबाजी में रहना , प्रगति से थक जाना । आराम की चाहना , आलस्य को पोसना ।

रूपांतर से डरना, दिव्यत्व से ऊबना!  क्रोध में बह जाना , उत्तेजनाओं में खो जाना ।

नशे में धुत हो , अपने को भूल जाना । अज्ञान और ‘अहं’ में ‘अँधा’ हो 

‘स्व’ ‘स्व’ और ‘स्व’ को ही देखना ।

निदान है –

आंतरिक विकास के प्रति सचेतन होना।

निम्न कामनाओं पर विजय द्वारा अपने ‘स्व को जानना । 

अपने ‘अहं’ को स्वयं पराजित करना । 

अपने ‘अहं’ की पराजय का स्वयं आनंद लेना ।

सत्ता के अंगों और चेतना के विकास को दिव्य लक्ष्य मानना ।

निदान है – आत्म संयम से व्यक्तित्व को बुनना,  दिव्य जीवन हेतु भगवान को चुनना ।

अपने आपको भगवान की ओर खोलना,  अपना सब कुछ भगवान को दे देना । 

रचना
  • आत्म विजय हेतु उड़ना होगी एक आंतरिक एवं साहसिक उड़ान, जानना होगा उच्चतम लक्ष्य की ओर निरंतर आरोहण करने का दिव्य विज्ञान।यही है युवकों की समस्या का सही निदान।जैसा सावित्री और सत्यवान ने कर दिखाया था ।
  • ‘स्व-रूपांतरण’ और ‘प्रेम’, निदान की है एक ही कुंजी इस कुंजी से उच्चतम संभावनाओं के सभी द्वार है स्वतः खुल जाते ।तब हममें से ही हर एक में भगवान खिलकर हैं बाहर आ जाते ।
  • यही है जीवन का एकमात्र परम लक्ष्य और शाश्वत यौवन का रहस्य !जिसे करना होगा प्रत्येक युवा को अभिव्यक्त ।

संयोजन : सुमन कोचर

यौवन प्रगति करने का सामर्थ्य है

यौवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम उम्र में कितने छोटे हैं, बल्कि इस पर कि हमारे अंदर विकसित होने और प्रगति करने की क्षमता कितनी है । विकसित होने का अर्थ है, अपनी अन्तर्निहित  शक्तियाँ, अपनी क्षमताएँ बढ़ाना; प्रगति करने का अर्थ है, अब तक अधिकृत योग्यताओं को बिना रुके निरन्तर पूर्णता की ओर ले जाना । वृद्धावस्था आयु बड़ी हो जाने से नहीं आती बल्कि विकसित होने और प्रगति करने की अयोग्यता के कारण अथवा विकसित होना और प्रगति करना अस्वीकार कर देने के कारण आती है । मैंने बीस वर्ष की आयु के वृद्ध और सत्तर वर्ष के युवक देखे हैं । ज्यों ही मनुष्य जीवन में स्थित हो जाने और पुराने प्रयासों की कमाई खाने की इच्छा करता है, ज्यों ही मनुष्य यह सोचने लगता है कि उसे जो कुछ करना था वह उसे कर चुका है और जो कुछ उसे प्राप्त करना था वह प्राप्त कर चुका,  संक्षेप में, ज्यों ही मनुष्य प्रगति करना, पूर्णता के मार्ग पर अग्रसर होना बंद कर देता है, त्यों ही उसका पीछे हटना, बूढ़ा होना निश्चित हो जाता है ।         

शरीर के विषय में भी मनुष्य जान सकता है कि उसकी क्षमताओं की वृद्धि और उसके विकास की लगभग कोई सीमा नहीं, बशर्ते कि मनुष्य इसकी असली पद्धति और सच्चे कारण ढूँढ निकाले। यहां हम जो बहुत से परीक्षण करना चाहते हैं उनमें से एक यह शारीरिक विकास भी है और मानवजाति की सामूहिक धारणा को निर्मूल कर हम संसार को यह दिखा देना चाहते हैं कि मनुष्य में कल्पनातीत संभावनाएँ निहित हैं । 

‘श्रीमातृवाणी’, खण्ड १२,पृ. २७७